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सुधा टीका स्था०४ उ०१ सू० ११ समेदं मोहविशेषभूत कपानिरूपणम् ४६३
छाया - चत्वारः कुषायाः प्रज्ञप्ता, तद्यथा - क्रोधकपायः १, मानकपायः २, मायाकषायः ३, लोभकपायः ४। एवं नैरयिकाणां यावत् वैमानिकानाम् २४ | चतुष्प्रतिष्ठितः क्रोधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - आत्मप्रतिष्ठितः १, परमतिष्ठितः २, तदुभयमतिष्ठितः ३, अप्रतिष्ठितः ४ | एवं नैरयिकाणां यावत् वैमानिकानाम् २४| एवं यावत् लोभः यात्रत् वैमानिकानाम् २४ | चतुर्भिः स्थानैः क्रोधोत्पत्तिः स्यात्, तद्यथा - क्षेत्रं प्रतीत्य, वस्तु प्रतीत्य, शरीरं प्रतीत्य, उपधिं प्रतीत्य । एवं नैरयि
संवास जो कहा गया है वह वेदरूप मोह के उदय से होता है, अतः - अब सूत्रकार इसी प्रसङ्ग से मोह के विषयभूत कषाय का भेद सहित कथन करते हैं-" चत्तारि कसया पण्णत्ता " इत्यादि
-आत्ख
सूत्रार्थ - कषाय चोर कही गई है, जैसे-क्रोध कषाय मान कषाय माया - वैमानिक कषाय और लोभ कषाय ये कषाय नारक से लेकर यावत्तक को होती हैं। क्रोध कषाय चतुष्प्रतिष्ठित कहा गया है जैसेप्रतिष्ठित क्रोध पर प्रतिष्ठित क्रोध तदुभयप्रतिष्ठित क्रोध और अमष्ठित क्रोध, इसी तरह का कथन नैरयिक से लेकर वैमानिक तक के जीवों में जानना चाहिये। इसी तरह से चतुष्प्रतिष्ठित यावत् लोभ कषाय तक कह लेनी चाहिये, और सब की चतुष्प्रतिष्ठित नारक से लेकर वैमानिक तक में है ऐसा जानना चाहिये, । क्रोध की उत्पत्ति चार कारणों से होती है, जैसे-क्षेत्र को लेकर, वस्तु को लेकर, शरीर को लेकर, और - उपधि को लेकर। इसी प्रकार क्रोध की उत्पत्ति के इन
ઉપરના સૂત્રમાં જે સંવાસનું' પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે, તે વેદરૂપ ઉદયથી ઉત્પન્ન થાય છે. આ સંબંધને અનુલક્ષીને હવે સૂત્રકાર મેાહના વિષય लूत उषायना लेहोनु नि३ रे छे - " चत्तारि कसाया पण्णत्ता " त्याहि उषायना यार प्रार उद्या छे - ( १ ) अधिषाय, (२) भानउषाय, ( 3 ) भाया કષાય અને (૪) લેાભકષાય આ ચારે કાયાના સદ્ભાવ નારકથી લઇને વૈમાનિક પન્તના જીવેામાં હુંય છે ક્રધકષાય ચતુષ્પતિષ્ઠિત કહ્યો છે-જેમકે (१) आत्मप्रतिष्ठित अध, (२) परप्रतिष्ठित अध, ( 3 ) तदुभय प्रतिष्ठित अध અને (૪) અપ્રતિષ્ઠિત ક્રાય, એ જ પ્રકારનું કથન નારકથી લઇને વૈમાનિકા પયન્તના જીવેામાં સમજી લેવું. એ જ પ્રમાણે માનકષાય, માયાકષાય અને લાભકષાયને ચતુપ્રતિષ્ઠિત કહ્યા છે નારકથી લઈને વૈમાનિક પર્યન્તના જીવેામાં આ ચારે કષાયેાની વતુપ્રતિષ્ઠિતતાના સદ્દભાવ સમજી લેવા જેઈએ
अधनी उत्पत्ति नीयेना यार भर थाय छे - (1) क्षेत्रने सधने, (२) वस्तुने सीधे, (3) शरीरने सीधे भने (४) उपधिने सीधे अपनी उत्पत्तिना