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स्थानास विधः संवासः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-देवो नामैको देव्या सार्द्ध संवासं गच्छेत, देवो नामैकः छव्या साई संवासं गच्छेत् , छवि मैको देव्या साई संवासं गच्छेन, छवि मैकश्छव्या साई संवासं गच्छेत् (मू० १०)। ____टीका-" चउबिहा" इत्यादि-देवानां स्थिति मर्यादा, चतुर्विधा प्रज्ञप्ता -कथिता, तद्यथा-' देवे' इत्यादि-एका कश्चित् , देवः सामान्यः सुरः, " नामे"-ति वाक्यालङ्कारे, एवमग्रेऽपि, १, एकः कश्चित् , देवस्नातकःदेवश्चासौ स्नातका प्रधानो देवस्नातकः, यद्वा-देवानां मध्ये स्नातका प्रधानो देवस्नातकः २, एका कश्चित् , देवानां पुरोहितः शान्तिप्रभृतिकर्मकारीति देव पुरोहितः ३, एका कश्चित्, देवप्रज्वलना-प्रज्वलयति-दीपयतीति प्रज्वलनः, देवानां प्रज्वलनो देव प्रज्वलना-मागधवद् देवस्तुतिपाठक: प्रज्ञप्तः ४)
देवस्थितिप्रस्तावादेवविशेषसंवासमाह - " चउबिहे" इत्यादि, देवो .. देव्या साद्ध संवासं-मैथुनाद्यर्थ सहावस्थानं गच्छेत् माप्नुयात् १, एका-कश्चित् , है, जैसे-एक देव का एक देवी के साथ संवास १ एक देव का छवि के साथ संवास २ छवि का देवी के साथ संवास-३ और छवि का छवि के साथ संवास ४।
विशेषार्थ-यहां स्थिति शब्द से आयु का ग्रहण नहीं हुवा है किन्तु-मर्यादा का ग्रहण हुवा है देवों की यह मर्यादारूप स्थिति ४ प्रकार की कही गई है जो इस प्रकार है-कोई एक देव सामान न्यसुर १ दूसरा कोई देवस्नातक प्रधानदेव २ कोई एक देवों का पुरोहित शान्ति आदि कर्मकारी देव पुरोहित ३ और कोई एक मागध की तरह देवस्तुतिपाठक देव प्रज्वलन-४। देवविशेष
સંવાસ ચાર પ્રકારને કહ્યો છે-(૧) એક દેવને એક દેવીની સાથે સંવાસ, (२) मे वन छविनी ( शरीरयुत नारीनी ) साथे सपास. (3) छविना. (वैठिय शरीरना) वानी साथे सपास मन (४) छविना (वैठिय शरीरना) . छवि साथे (वैठिय शरी२ साथे) सवास..
હવે આ સૂત્રને ભાવાર્થ પ્રકટ કરવામાં આવે છે–અહીં “સ્થિતિ” પદ્ધ આયુના અર્થમાં વપરાયું નથી, પણ મર્યાદાના અર્થમાં વપરાયું છે. દેવેની આ મર્યાદા રૂપ સ્થિતિ ચાર પ્રકારની કહી છે. (૧) કઈ એક સામાન્ય દેવ. અહીં “નામ” પ વાકયાલંકાર રૂપે વપરાયું છે. એ જ પ્રમાણે આગળ પણ સમજી લેવું. (૨) દેવસ્નાતક એટલે પ્રધાન (મુખ્ય) દેવ. જેમકે ઈન્દ્રાદિને આ પ્રકારમાં મૂકી શકાય. (૩) કેઈક દેવ દેવેને પુરેહિત પણ હોય છે. શાન્તિ આદિ કર્મકારી દેવપુરહિત હોય છે. (૪) દેવસ્તુતિ પાઠક દેવને દેવ પ્રજવલન કહે છે.