SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 479
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६० स्थानास विधः संवासः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-देवो नामैको देव्या सार्द्ध संवासं गच्छेत, देवो नामैकः छव्या साई संवासं गच्छेत् , छवि मैको देव्या साई संवासं गच्छेन, छवि मैकश्छव्या साई संवासं गच्छेत् (मू० १०)। ____टीका-" चउबिहा" इत्यादि-देवानां स्थिति मर्यादा, चतुर्विधा प्रज्ञप्ता -कथिता, तद्यथा-' देवे' इत्यादि-एका कश्चित् , देवः सामान्यः सुरः, " नामे"-ति वाक्यालङ्कारे, एवमग्रेऽपि, १, एकः कश्चित् , देवस्नातकःदेवश्चासौ स्नातका प्रधानो देवस्नातकः, यद्वा-देवानां मध्ये स्नातका प्रधानो देवस्नातकः २, एका कश्चित् , देवानां पुरोहितः शान्तिप्रभृतिकर्मकारीति देव पुरोहितः ३, एका कश्चित्, देवप्रज्वलना-प्रज्वलयति-दीपयतीति प्रज्वलनः, देवानां प्रज्वलनो देव प्रज्वलना-मागधवद् देवस्तुतिपाठक: प्रज्ञप्तः ४) देवस्थितिप्रस्तावादेवविशेषसंवासमाह - " चउबिहे" इत्यादि, देवो .. देव्या साद्ध संवासं-मैथुनाद्यर्थ सहावस्थानं गच्छेत् माप्नुयात् १, एका-कश्चित् , है, जैसे-एक देव का एक देवी के साथ संवास १ एक देव का छवि के साथ संवास २ छवि का देवी के साथ संवास-३ और छवि का छवि के साथ संवास ४। विशेषार्थ-यहां स्थिति शब्द से आयु का ग्रहण नहीं हुवा है किन्तु-मर्यादा का ग्रहण हुवा है देवों की यह मर्यादारूप स्थिति ४ प्रकार की कही गई है जो इस प्रकार है-कोई एक देव सामान न्यसुर १ दूसरा कोई देवस्नातक प्रधानदेव २ कोई एक देवों का पुरोहित शान्ति आदि कर्मकारी देव पुरोहित ३ और कोई एक मागध की तरह देवस्तुतिपाठक देव प्रज्वलन-४। देवविशेष સંવાસ ચાર પ્રકારને કહ્યો છે-(૧) એક દેવને એક દેવીની સાથે સંવાસ, (२) मे वन छविनी ( शरीरयुत नारीनी ) साथे सपास. (3) छविना. (वैठिय शरीरना) वानी साथे सपास मन (४) छविना (वैठिय शरीरना) . छवि साथे (वैठिय शरी२ साथे) सवास.. હવે આ સૂત્રને ભાવાર્થ પ્રકટ કરવામાં આવે છે–અહીં “સ્થિતિ” પદ્ધ આયુના અર્થમાં વપરાયું નથી, પણ મર્યાદાના અર્થમાં વપરાયું છે. દેવેની આ મર્યાદા રૂપ સ્થિતિ ચાર પ્રકારની કહી છે. (૧) કઈ એક સામાન્ય દેવ. અહીં “નામ” પ વાકયાલંકાર રૂપે વપરાયું છે. એ જ પ્રમાણે આગળ પણ સમજી લેવું. (૨) દેવસ્નાતક એટલે પ્રધાન (મુખ્ય) દેવ. જેમકે ઈન્દ્રાદિને આ પ્રકારમાં મૂકી શકાય. (૩) કેઈક દેવ દેવેને પુરેહિત પણ હોય છે. શાન્તિ આદિ કર્મકારી દેવપુરહિત હોય છે. (૪) દેવસ્તુતિ પાઠક દેવને દેવ પ્રજવલન કહે છે.
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy