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स्थानावे ____टीका-' तओ लेसाओ' इत्यादि । तिस पदसु त्रिसंख्यकाः लेश्याः दुरभिगन्धाः दुर्गन्धवत्यः पनप्ताः, दुरभिगन्धत्वं च तासां पुद्गलान्मकत्वात् , पुद्गलेषु च गन्धादीनामवश्यम्भावात् , उक्तञ्च
"जह गोमडस्स गंधो, मुणगमडम्स व जहा अहिमडम्स ।
एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥ १॥" छाया-यथा गोमृतस्य गन्धः, शुनकमृतस्य यथाऽहिमृतस्य ।
इतोऽप्यनन्तगुणो लेश्योनामप्रशस्तानाम् ॥ १॥ ताः दर्शयति-कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेल्या । वर्णश्वासां नामानुसारी विज्ञेयस्तेन कृष्णलेश्या-कृष्णवर्णा, नीललेश्या-नीलवर्णा, कापोतलेश्याकही गई हैं। इसी प्रकार से तीन लेश्याएँ प्रशस्त कही गई हैं ११ और तीन लेश्याएँ अप्रशस्त कही गई हैं-१२ । इसी प्रकार से तीन लेश्याएं शीत-रूक्ष कही गईहैं-१३ और-तीन लेश्याएँ स्निग्ध-उष्ण कही गईहैं-१४॥ ___ इन सूत्रों का तात्पर्यार्थ इस प्रकार से है-लेश्या-६ प्रकार की कही गई हैं कृष्णलेश्या-नीललेश्या-कापोतलेश्या-तेजोलेश्या-पद्मलेश्या -और-शुक्ललेश्या-६ । इन में आदि की जो ३ लेश्याएँ हैं-कृष्णलेल्या नीललेल्या, और-कापोतलेश्या-३ ये दुरभिगन्धवाली इसलिये कही गई हैं कि-ये दुरभिगन्धवाले पुद्गलों वाली होती हैं, क्यों कि-पुद्गलों में गन्धादिक गुण अवश्य होते है। कहा भी है-"जहगोमडम्स गंधो" इत्यादि-जैसीगोके मृतक शरीर की, कुत्ते के मरे शरीर की, अथवाजैसी सर्पके सरे शरीर की, दुर्गन्ध होती है इस से भी अनन्तगुणे છે, અને (૧૦) ત્રણ લેશ્યાઓને વિકૃદ્ધ કહી છે (૧૧) એ જ પ્રમાણે ત્રણ લેશ્યાઓને અપ્રશસ્ત કહી છે અને (૧૨) ત્રણ લેશ્યાઓને પ્રશસ્ત કહી છે. (१३) मे. माणे जर वेश्यागाने शीत-३क्ष ही छ, मन (1४) तर લેશ્યાઓને નિધ-ઉષ્ણ કહી છે
હવે આ ૧૪ સૂત્રનો ભાવાર્થ પ્રકટ કરવામાં આવે છે-લેશ્યાના નીચે प्रमाणे १२ ४ह्या छ-(१) ४२ सेश्या, (२) नील वेश्या, (3) अपात वेश्या (४) ते वेश्या, (५) ५ वेश्या मने (6) शुस वेश्या मा ६ वेश्यामाમાંથી પહેલી ત્રણ લેશ્યાએ ને દુરભિ ગન્ધવાળી કહેવાનું કારણ એ છે કે તે ત્રણે લેશ્યાઓ દુરભિ ગંધવાળા પુવાળી હોય છે, કારણ કે પુદ્રમાં गधा गुण अवश्य डाय छे. यु पार छ है-"जह गोमडस्स गधो" त्यादि “ગાયના મૃત કલેવરની, તરાના મૃત કલેવરની અને સાપના મૃત શરીરની