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सुधा टीका स्था०३३०४ सू० ८५-८७ निवृत्तिनिरूपणम् त्रिविधः अन्तः प्रज्ञप्तः, तथथा-लोकान्तः, वेदान्तः, समयान्तः ॥सू०८६॥
त्रयो जिनाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-अवधिज्ञानजिनः, मनःपर्यवज्ञानजिनः, केवलज्ञानजिनः १ । त्रयः केवलिनः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-अवधिज्ञानकेवली, मनापर्यवज्ञानके वली, केवलज्ञानकेवली २। त्रयः अर्हन्तः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-अवधिज्ञानाहन मनः पर्यवज्ञानाईन् , केवलज्ञानाईन् ३ ॥ मू० ८७ ।।
टीका-'तिरिहा वायत्ती' इत्यादि ।
व्यावर्तन-व्यावृत्तिः हिंसादेः फियदवधिनिवर्तनं, सा त्रिविधा तथाहिज्ञायिका-ज्ञस्य हिंसादीनां हेतुस्वरूपफलज्ञायकस्य ज्ञानपूर्विका व्यावृत्तिः, साऽपि
और विचिकित्सा ३ । इस प्रकार अध्युपपादना और पर्यापादना भी तीन तीन प्रकार की कही गई है। सू०८५ ॥ ___ अन्त तीन प्रकार का कहा गया है जैसे लोकान्त वेदान्त और समयान्त ॥ सू०८६ ।
जिन तीन प्रकार के कहे गये हैं, जैसे अवधिज्ञानजिन मनःपर्यवज्ञानजिन और केवलज्ञानजिन । १ केवली तीन प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-अवधिज्ञानकेवली मनः पर्यवज्ञानकेवली और केवलज्ञान केवली। २ अर्हन्त तीन प्रकार के कहे गये है, जैसे-अवधिज्ञानार्हन्त, मनः पर्यवज्ञानोहन्त और केवलज्ञानार्हन्त ३ .
भावार्थ - इन ८५ - ८६ और ८७ सूत्रों का भावार्थ इस प्रकार से है हिंसादि पापों का कितनी अवधि तक निवतन होना इसका नाम व्यावर्तन है, तात्पर्य इसका यह है कि हिंसादिक पापों से एकदेश निवर्तन होना इसका नाम देशनिवर्तन है। और અને (૩) વિચિકિત્સા. એ જ પ્રમાણે અદ્ભુપપાદન અને પર્યાપદના પણ ત્રણ ત્રણ પ્રકારની કહી છે. સૂ. ૮૫ છે ___मन्त ४२il & छ-(१) all-त, वेदान्त भने (3) समयान्त. ॥ सू. ८६ ॥
or a 1२॥ ४ा छ-(१) भवधिज्ञान शिन, (२) मन:पय 4ज्ञान नि भन (3) विज्ञान लिन. । १ ।,
क्षी त्रय प्रा२ना ४ छ-(१) मधिज्ञान वक्षी, (२) मनापज्ञान पक्षी मने (3) Bणज्ञान की. । २ । ___
२॥ ४ह्या छ-(१) अवधिज्ञान-त, (२) भना५यज्ञानन्ति मन (3) वज्ञानान्त. । 3 । ॥ सू. ८७ ॥
- હવે ૮૫, ૮૬ અને ૮૭ માં સૂત્ર ભાવાર્થ પ્રકટ કરવામાં આવે છે— હિંસાદિ પાપનું અમુક મર્યાદામાં નિવર્તન થવું તેનું નામ જાવર્તન છે.
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