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स्थानागसूत्रे ૨૦થે अथवा त्रिविधं वचनं प्रज्ञप्तं तद्यथा-स्त्रीवचनं, पुंवचनं, नपुंसकवचनम् । अथवा त्रिविधं वचनं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-अतीतवचनं, प्रत्युत्पन्नवचनं अनागतवचनम् ॥सू०६२॥
टीका-'तिविहे काले ' इत्यादि । कलनं कालः परिच्छेदः । यद्वा-- कल्यते-परिच्छिद्यते वस्त्वनेनेति कालः । स त्रिविधस्तथाहि-अतीतः, अतीतः, अतिशयेन इतः-गतः-अतीतः - व्यतीतः वर्तमानत्वमतिक्रान्त इत्यर्थः । पतिसम्मति उत्पन्नः प्रत्युत्पन्नः-वर्तमान इत्यर्थः । अनागतः-न आगतः-अनागत:- . वर्तमानत्वमप्राप्तः भविष्यनित्यर्थः । कालसामान्यं त्रिधात्वेन प्रोच्य साम्मतं वचन, अथवा इस रूप से भी बचन तीन प्रकार का कहा गया हैस्त्रीवचन, पुंवचन और नपुंसकवचन अथवा-अतीतवचन, वर्तमानवचन
और अनागतवचन के भेद से भी वचन तीन प्रकार का कहा गया है द्रव्यों के रूप के परिवर्तन कराने में जो निमित्त कारण होता है वह व्यवहार काल है और वर्तमानलक्षण जिसका होता है वह निश्चय काल है। कहा भी है-" दवपरिवहरूंवो" इत्यादि । ___टीकार्थ-यही बात टीकाकारने "कलनं कालः परिच्छेदः यद्वा कल्यते परिच्छिद्यते वस्तु अनेन इति कालः" इस व्युत्पत्तिसे प्रदर्शित की है जो काल वर्तमानता को अतिक्रान्त कर चुका है उस काल का नाम अतीत -भूत काल है, जो वर्त रहा है वह वर्तमान काल है तथा जो वर्तमानता को अप्राप्त है वह भविष्यत् काल है इस तरह से काल सामान्य के भेदों का कथन करके अब सूत्रकार उनके भेदों के भेदों का कथन करते (૨) દ્વિવચન અને (૩) બહુવચન અથવા વચનના આ પ્રમાણે ત્રણ પ્રકાર ५८-५९ छ (1) श्रीवयन, (२) पुपयन मन (3) नस क्यन अथवा (१) मतीत क्यन (२) पतमान क्यन अने मनात क्यनना थी पर વચનને ત્રણ પ્રકાર કહ્યાં છે. દ્રવ્યોના રૂપમાં પરિવર્તન કરાવવામાં જે નિમિત્ત કારણું હોય છે, તેનું નામ વ્યવહાર કાળ છે અને વર્તમાન ક્ષણજેની હોય છે એવા કાળને નિશ્ચયકાળ કહે છે. કહ્યું પણ છે કે– ___“दव्वपरिवट्टरूवो" त्यादि ।
साथ-2 पतरे "कलन कालः परिच्छेदः यद्वा-कल्यते परिच्छिद्यते यस्तु अनेन इति काल." मा व्युत्पत्ति द्वारा ४८ ४ी छ. २१ पत:માનતાને કરી ચુક્યા છે-વ્યતીત કરી ચુક્યું છે તે કાળને અતીતકાળ અથવા ભૂતકાળ કહે છે. જે કાળ વત (ચાલી), રહ્યો છે તેને વર્તમાનકાળ કહે છે, તથા જે વર્તમાનતાને અપ્રાપ્ય છે એવા કાળને અનાગત અથવા ભવિષ્યકાળ