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स्थानीय नाणापेजदोसे ६ । अन्नाणे तिविहे पण्णत्ते, तंजहा-देसण्णाणे सव्वण्णाणे, भावण्णाणे७ ॥ सू० ५९॥ ___ छाया-त्रिविधं मिथ्यात्वं प्रज्ञप्तं तद्यथा-अक्रिया, अविनयः, अज्ञानम् १ । अक्रिया त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-प्रयोगक्रिया, समुदानक्रिया, अज्ञानक्रिया २। प्रयोगक्रिया, त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-मनःप्रयोगक्रिया, वाक्प्रयोगक्रिया, कायप्रयोगक्रिया ३ । समुदानक्रिया, त्रिविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-अनन्तरसमुदानक्रिया, परम्परासमुदानक्रिया, तदुभयसमुदानक्रिया ४ । अज्ञानक्रिया त्रिविधा प्रज्ञप्ता,
पूर्व में नरक प्ररूपित किये अब सूत्रकार यह प्रकट करते हैं कि इन नरकों में जीव की गति मिथ्यात्व से होती है। अथवा नय जब अन्य नय की अपेक्षा से रहित हो जाते हैं तब वे मिथ्यादृष्टिवाले हो जाते हैं-सो इसी सम्बन्ध को लेकर अब सूत्रकार मिथ्यात्व के स्वरूप का प्ररूपण करते हैं-तिविहे मिच्छत्ते पण्णत्ते' इत्यादि।
सूत्रार्थ-मिथ्यात्व तीन प्रकारका कहा गया है-जैसे अक्रिया, अविनय और अज्ञान १, इनमें अक्रिया तीन प्रकारकी कही गई है । जैसे-प्रयोग क्रिया समुदाननिया, और अज्ञानक्रिया२, प्रयोगक्रिया भी तीन प्रकारकी कही है-जैसे-मनःप्रयोग क्रिया, वचनप्रयोग क्रिया और कायप्रयोग क्रिया ३, समुदान क्रिया-कोको प्रकृतिस्थित्यादिरूपसे व्यवस्थित करनेवाली क्रिया अथवा भिक्षा-अनन्तर समुदान किया, परम्परासमुदान क्रिया, और तदुभय समुदानक्रिया ४, इस प्रकार से तीन भेदवाली कहो गई
પહેલા સૂત્રમાં નરકની પ્રરૂપણ કરવામાં આવી. હવે સૂત્રકાર એ વાત પ્રકટ કરે છે કે મિથ્યાત્વને કારણે જીવને તે નરકમાં જવું પડે છે. અથવા નય જ્યારે અન્ય નયની અપેક્ષાથી રહિત થઈ જાય છે, ત્યારે તેઓ મિથ્યાદષ્ટિવાળા થઈ જાય છે. આ સંબંધને અનુલક્ષીને હવે સૂત્રકાર મિથ્યાત્વના २१३५नी ५३५ए। रे छ-"तिविहे मिच्छत्ते पण्णत्ते" त्या:-।
सूत्राथ-भिथ्यात्व प्रा२तुं ४घुछ-(१) माठिया, (२) मविनय मन (3) भज्ञान. तमाथी मठियाना पत्र प्रा२ छ-(१) प्रयोगठिया, (२) सभुः हानया भर (3) भज्ञानष्ठिया. प्रयोगठियाना ५ त्र] प्रा२ छ-(१) भन: प्रयोग ठिया, (२) १.५प्रयोग ठिया, मने (3) अयप्रयोग लिया. સમુદાનકિયાના કર્મોને પ્રકૃતિ સ્થિતિ આદિરૂપે વ્યવસ્થિત કરવાવાળો ક્રિયા પણ નીચે પ્રમાણે ત્રણ ભેદ કહ્યા છે-(૧) અનન્તર સમુદાનકિયા, (૨) પરમ્પરા સમુદાનક્રિયા અને (૩) તદુભય સમુદાનક્રિયા. અજ્ઞાન ક્રિયાના પણ નીચે