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स्थानास्त्रे
मूलम्-तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा-णामलोगे, ठवणलोगे, दबलोगे १ । तिविहे लोगे पण्णते तं जहा-णाणलोगे दंसणलोगे चरित्तलोगे २ । तिविहे लोगे पण्णत्ते, तं जहा-उद्धलोगे अहोलोगे तिरियलोगे ३ ॥सू० ३० ॥ ___ छाया-त्रिविधो लोकः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-नामलोकः, स्थापनालोकः, द्रव्यलोकः १ । त्रिविधो लोकः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-ज्ञानलोकः, दर्शनलोकः, चारित्रलोकः २। त्रिविधो लोकः मज्ञप्तः, तद्यथा-ऊर्वलोक', अधोलोकः तिर्यग्लोका३ ॥
टीका-तिविहे लोगे' इत्यादि । लोक्यते-अवलोक्यते केवलालोकेनेति लोकः, स नामस्थापनाद्रव्यभेदात्रिविधः तत्र नामस्थापने नामेन्द्रस्थापनेन्द्रवद् व्याख्येये। द्रव्यलोकोऽपि तथैव । नवरं जशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्त स्वरूप कहा है पर यहां उन चन्द्रादिक भावों का जो आधारभूतलोक है उसका स्वरूप कहा जाता है क्यों कि लोक उन चन्द्रादिक भावों का ___आधारभूतक्षेत्र है-(तिविहे लोगे पण्णत्ते ) इत्यादि।
सूत्रार्थ-तीन प्रकार कालोक कहा गया है जैसे-नामलोक, स्थापनालोक और द्रव्यलोक अथवा इस प्रकार से भी लोक विविध कहा गया है जैसे ज्ञानलोक, दर्शनलोक और चारित्रलोक अथवा-इस प्रकार से भी लोक तीन तरह का कहा गया है उर्वलोक, अधोलोक और तिर्यग्लोक। टीकार्थ-जो केवलज्ञानरूपी आलोक (प्रकाश) के द्वारा देखा जाताहै वह लोक है वह लोक लाखलोक, स्थापनालोक और द्रव्यलोक के भेद से तीन प्रकार का है इनमें नामलोड और स्थापनालोक नामेन्द्र और સૂત્રનું સ્વરૂપ કહ્યું છે. તે ચદ્રાદિક ભાવના આધારરૂપ જે લોક છે, તેના સ્વરૂપનું અહીં પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે, કારણ કે લેક એ ચન્દ્રાદિક मावानु आधारभूत क्षेत्र छ-"तिविहे लोगे पण्णत्ते" त्याह
सूत्राथ-सोनार ४१२ छ-(१) नामसी, (२) स्थापना मन (3) દ્રવ્યલોક, અથવા લેકના નીચે પ્રમાણે ત્રણ પ્રકાર પણ કહ્યા છે-(૧) જ્ઞાનક, (૨) દર્શનલેક અને (૩) ચારિત્રલેક. અથવા લેકના નીચે પ્રમાણે ત્રણ પ્રકાર ५५ ५ छ-(१) serals, (२) मा भने (3) तिय .
ટીકાર્થ-કેવળજ્ઞાન રૂપ આલેક (પ્રકાશ) વડે જેને જોઈ શકાય છે, તે લેક છે. તે લેક નામલોક, સ્થાપનાલેક અને દ્રવ્યલેકના ભેદથી ત્રણ પ્રકાર તેમાંથી નામલેક અને સ્થાપનાકનું કથન નમેન્દ્ર અને સ્થાપનેન્દ્રના પૂર્વોકત
છે.