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________________ स्थानानसत्रे १३६ " टीका - ' तिविहा ' इत्यादि सुगमं, नवरं - नारका दृष्टितः सम्यङ् - मिथ्यामिश्रेति त्रिविधदृष्टिसं पन्ना भवन्ति, तत्र केचित् सम्यग्दृष्टयः के चिन्मिथ्यादृष्टयः इति । शेपजीवानतिदेशत आह-' एवं ' इत्यादि एवं नैरयिरुवत् विकलेन्द्रियबजे ? एकेन्द्रियविकलेन्द्रियान् वर्जयित्वेत्यर्थः यतः पृथिव्यादीनां मिथ्यात्वस्यैव सद्भावात् द्वित्रिचतुरिन्द्रियाणां तु मिश्रत्वाभावान्नैषां तिस्रो दृष्टय इकि ' विकलेन्द्रियवर्जम्' इत्युक्तम् । कियदवधि ? इत्याह - ' जा ' इत्यादि, यावद् वैमानिकानां वैमानिकपर्यन्तमित्यर्थः विज्ञेयमिति ॥ १ ॥ त्रिविधदर्शनवन्तश्व दुर्गति - सुगवियोगाद् दुर्गताः सुगताथ भवन्तीति दुर्गत्यादिकं प्रदर्शयन् सूत्रचतु टीकार्थ- नैरयिक तीन प्रकार के कहे गये हैं- जैसे - सम्यग्दृष्टि, मिथ्या दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि अर्थात् दृष्टिकी अपेक्षा नारक सम्पष्टि मिथ्यादृष्टि और मिश्र दृष्टि से संपन्न होने के कारण तीन प्रकार के होते हैं इनमें कितने मिथ्यादृष्टि से संपन्न होने के कारण मिध्यादृष्टि होते हैं, कितनेक सम्यक दृष्टि से संपन्न होने के कारण सम्यग्दृष्टि होते हैं और कितने दोनों प्रकार की दृष्टि से युक्त होने के कारण मिश्र दृष्टि होते हैं । इसी प्रकार से इन दृष्टियों से संपन्न होने का कथन एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रियों को छोड़कर वैमानिक तक के जीवों में कर लेना चाहिये - एकेन्द्रिय जीवों में केवल मिध्यात्व - मिध्यादृष्टि ही होता है तथा विकलेन्द्रियों में दोइन्द्रिय, तेहन्द्रिय और चौरन्द्रियइनमें मिश्रदृष्टि का अभाव रहता है-अतः इनमें तीनों दृष्टियों का सद्भाव नहीं होता है इसलिये इनका परिवर्जन यहां कहा है. त्रि वध दर्शनवाले जीव दुर्गति और सुगति के योग से दुर्गत और सुगत होते ટીકા-દૃષ્ટિની અપેક્ષાએ નારકેા ત્રણ પ્રકારના કહ્યા છે–(૧) સમ્યગ્દષ્ટિ मिथ्यादृष्टि भने (3) सभ्यग् मिथ्यादृष्टि ( भिश्रदृष्टि ). टसा नार। मिथ्याદૃષ્ટિવાળા હાય છે, તેથી તેમને મિથ્યાદૃષ્ટિ કહે છે કેટલાક નારકે સમ્યક્ દૃષ્ટિવાળા હાય છે, તેથી તેમને સમ્યગ્દષ્ટિ કહે છે. કેટલાક નારકો બન્ને પ્રકારની ષ્ટિથી યુક્ત હાય છે, તેથી તેમને મિશ્રષ્ટિ કહે છે. એકેન્દ્રિયા અને વિકલેન્દ્રિચા સિવાયના વૈમાનિક પન્તના સમસ્ત જીવેા પણ આ ત્રણે પ્રકારની દૃષ્ટિએવાળા હાય છે. એકેન્દ્રિયેામાં માત્ર મિથ્યાત્વ-મિથ્યા દૃષ્ટિના જ સદ્ન ભાવ હાય છે. વિકલેન્ડ્રિયામાં ( દ્વીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય અને ચતુરિન્દ્રિય જીવેામાં) મિશ્રદૅષ્ટિના ભાવ હોય છે. આ રીતે એકેન્દ્રિયા અને વિકલેન્દ્રિયેામાં ત્રણે ત્રણ દૃષ્ટિઓને સદ્ભાવ નહીં હાવાને કારણે ઉપરના કથનમાં તેમનું પરિ
SR No.009308
Book TitleSthanang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size47 MB
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