________________
५६७
सुधा टीका स्था. ३ उ० १ सू० ३ नैरयिकस्वरूपनिरूपणम्
उक्ता विकुर्वणा, सा च नारकाणामपि भवतीति त्रिस्थानकेन नारकान् निरूपयति
मूलम्-तिविहानेरइया पण्णत्ता, ते जहा--कइसंचिया, अकइ सचिया, अवत्तव्वसंचिया । एवमोगदियवज्जा जाव वेमाणिया ॥ सू० ३ ॥ ___ छाया-त्रिविधा नैरयिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-कतिसंचिताः, अकतिसंचिताः, अवक्तव्यकसंचिताः । एवमेकेन्द्रियवर्जा यावद्वैमानिकाः ।। सू० ३ ।।
टीका-तिविहा ' इत्यादि सुगमम् ! नवरं-कति शब्दश्चान्यत्र प्रश्नविशिष्ट संख्यावाचकतया रूढोऽपीद संख्यामात्रे द्रष्टव्यः । तत्र नैरयिका:-कतीतिसंख्याता द्वयादि संख्यावन्तः ते च एकैकसमये ये उत्पन्नाः सन्तः संचिताश्च
ऊपर कही गई यह विकुर्वणा नारकों को भी होती है अतः अव सूत्रकार तीन स्थानों से लारकों की प्ररूपणा करते हैं -
'तिविहा नेरइया पण्णत्ता' इत्यादि ।
इस सूत्र का अर्थ सुगम है परन्तु जो इसमें विशेषता है वह इस प्रकार से है-यपि कति शब्द दूसरी जगह प्रश्न विशिष्ट संख्या के कहने में रूढ है-परन्तु वह यहां संख्यामात्र में कहा गया है प्रश्नकर्ताने जो ऐसा पूछा है कि नैरयिक कितने कहे हैं तो उत्तर में ऐसा कहा गया है कि नैरयिक तीन प्रकार के कहे गये हैं इनमें एक हैं कतिसंचित और दूसरे हैं अकति संचित तथा तीसरे हैं अवक्तव्यक संचित; कति संचित का तात्पर्य ऐसा है कि एक समय में उत्पन्न होकर जो
ઉપર જેવી વાત કરવામાં આવી છે તે વિમુર્વણ નારકમાં પણ થાય છે. તેથી સૂત્રકાર ત્રણ સ્થાની અપેક્ષાએ નારકની પ્રરૂપણ કરે છે–
“तिविहा नेरइया पण्णत्ता " त्याह
આ સૂત્રને અર્થ સરળ છે, પરંતુ તેમાં આ પ્રકારની વિશેષતા છે– જે કે “કતિ પદ પ્રશ્નવિશિષ્ટ સંખ્યાને પ્રકટ કરવાને માટે સામાન્ય રીતે તે વપરાય છે, પરંતુ અહીં તેને પ્રગ સંખ્યામાત્રને પ્રકટ કરવા માટે થયે છે.
प्रश्न-" ना२४ 821 प्र२ना ४ा छ ?"
ઉત્તર–નારક ત્રણ પ્રકારના કહ્યા છે, તે ત્રણ પ્રકારે નીચે પ્રમાણે છે (१) तिमयित, (२) मतिसथित सने (3) अवतव्य सयित.