________________
सुधा टीका स्था०२उ०३सू०२८ जीवधर्मनिरूपणम्
नो ज्ञानाचारः-तद्भिन्नो दर्शनाद्याचार इति १ । दर्शनं सम्यक्त्वं, तदाचारो दर्शनाचारः स निश्शङ्कितादिरष्टविध एव,
उक्तञ्च-"णिस्संकिय १ निरखिय २, निवितिगिच्छा ३ अमूढदिद्वीच्या उबवृह ५ थिरीकरणे ६, वच्छल्ल ७पभावणे ८ अट्ट" ॥१॥ इति । छाया-निश्शहितो १ निष्कासितो २ निर्विचिकित्सा३ऽभूढ दृष्टिश्च ४। उपहा५ (वृद्धिकरणं प्रशंसाच) स्थिरीकरण,वात्सल्यं७ प्रभावना८ अष्ट ।'इति
इसमें चार सूत्र सुगम है जो गुणों की वृद्धि के लिये आचरित किया जाता है उसका नाम आचार है अर्थात् शास्त्रविहित जो मार्ग है-व्यवहार है वह आचार है, अनज्ञान का नाम ज्ञान है इस श्रुतज्ञानविषयक जो आचार है वह ज्ञानाचार है यह ज्ञानाचार काल आदि के भेद से आठ प्रकार का है। कहा भी है-'काले विणए' इत्यादि।
कालाचार, विनयाचार, बहुमानाचार, उपधानाचार, अनिलवाचार, व्याचार, अर्थाचार और तदुभयाचार ज्ञानाचार से भिन्न जो आचार है वह नोज्ञानाचार है यह नोज्ञानावार दर्शनाचार और नोदर्शनाचार के भेद से दो प्रकार का कहा गया है । दर्शन शब्द का अर्थ सम्यक्त्व है सम्यक्त्व विषयक जो आचार है वह दर्शनाचार है यह दर्शनाचार निःशंकित आदि के भेद से आठ प्रकार का है।
कहा भी है-'निस्संकिय निमंखिय' इत्यादि। छे. मटसे विलित २ भाग ( व्या२) छे, तेनु नाम सा-२ छे. થતજ્ઞાનનું નામ જ્ઞાન છે. તે શ્રુતજ્ઞાન વિષયક જે આચાર છે તે આચારને જ્ઞાનાચાર કહે છે. તે જ્ઞાનાચાર કાળ આદિના ભેદથી આઠ પ્રકારના છે. કહ્યું પણ છે કે
"काले विणए" त्यादि-ते प्र.३। नाय प्रमाणे छे-(१) ४८२, (२) विनयाया२, (3) महुमाना॥२, (४) ५धानायर, (५) मनिहवाय॥२, (6) व्याया२, (७) अाया२ मने (८) तनयाया२.
- જ્ઞાનાચારથી ભિન્ન જે આચાર છે તેને જ્ઞાનાચાર કહે છે. તે नशानायाना मे ले ४ा छ-(१) शनाया२ मने (२) शनाया२. દર્શન એટલે સમ્યકત્વ. સમ્યકત્વ વિષયક જે આચાર છે, તે આચારને દર્શ. નાચાર કહે છે. તે દશનાચાર નિ શકિત આદિના ભેદથી આઠ પ્રકારના છે, કહ્યું પણ છે કે –
" निस्संस्त्रिय निकंखिय" त्याह- भार ही नीय प्रमाणे -