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मुंपारीका स्था० १ उ०१ मू०४९ शादिनिरूपणम् मूलम्-एगे सदे। एगे रूवे । एगे गंधे । एगे रसे। एये फासे । एगे सुब्भिसह । एगे दुन्भिसद्दे एगे सुरूवे । एगे दुरूवे । एगे दीहे । एगे हस्ले । एगे बढे । एगे तंसे । एगे चउरंसे । एगे पिहुले । एगे परिमंडले । एगे किण्हे । एनो णीले । एगे लोहिए । एगे हलिदे । एगे सुकिल्ले । एगे सुधिगंधे । एने दुभि गंथे । एगेतिते। एगे कडुए। एगेकसाए। एगे अंबिले। एगे महुरे। एगे कक्खडे जाव लुक्खे ॥ सू० १९ ॥
छाया-एकः शब्दः । एक रूपम् । एको गन्धः । एको रसः एकः-स्पर्शः। एकः सुरभिशब्दः । एको दुरभिशब्दः । एकं मुरूपम् । एकं दृरूपम् एकं दीर्वम् । पकं इस्त्रम् । एक वृत्तम् । एकं व्यस्रम् । एक चतुरस्रम् । एक पृथुलम् एकः कृष्णः। सब स्कन्धरूप हैं । पुनल को शास्त्रकारों ने दो विभागों में विभक्त किया है एक परमाणुरूप विभाग में और दूसरे स्कन्धरूप विभाग में-परमाणु किसी भी इन्द्रिय से गम्य नहीं होते हैं-अतः उनकी सत्ता कार्यरूप अनुमान से ही जानी जाती है तथा स्कन्धरूप पुद्गल की सत्ता इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष से जानी जाती है । 'एगे सद्दे' इत्यादि । ४९।।
मूलार्थ-शब्द एक है, रूप एक है, गन्ध एक है, रस एक है, स्पर्श एक है सुरभिशब्द एक है दुरभिशब्द एक है सुरूप एक है दुरूप एक है दीर्घ एक है 'इस्य एक है वृत्त एक है व्यस्त्र एक है चतुरम्र एक है રૂપ જ હોય છે. શાસ્ત્રકારોએ પુલના બે વિભાગ પાડયા છે-(૧) પરમાણુ રૂપ વિભાગ અને (૨) કન્વરૂપ વિભાગ પરમાણુ કઈ પણ ઇન્દ્રિયથી ગમ્ય (અનુભવી શકાય એવા) નથી, તેથી તેમની સત્તા (અસ્તિત્વ) કાર્યરૂપ અનુમાનથી જ જાણી શકાય છે, તથા સ્કન્વરૂપ પદલની સત્તા (અસ્તિત્વ) ઇન્દ્રિયજન્ય પ્રત્યક્ષથી (અનુભવથી) જાણી શકાય છે.
" एगे सदे" या ॥ ४ ॥
મૂવા–શબ્દ એક છે, રૂપ એક છે, ગંધ એક છે, રસ એક છે, ५ थे, सुरणिय ( मधुर ) से छ, दुनि रा मे , स३५ो छ, ३३५ मे थे, ही। छ, समेछ, वृत्त ( २)