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________________ सुभा टीका स्था० १ उ०१ सू० ४७ प्रदेशादिनिरूपणम् स चायं परमाणुः, एक-एकत्यसंग्ख्यावान् । एकत्वं चास्य वापत पर योध्यम् । अथवा-समयपदेशपरमाणयो यद्यप्यनन्ताः, तथापि तेषु अनन्तभेदात्मकस्य एकेकस्य तुल्यरूपत्वमपेक्ष्यकत्वमिति ।। मू० ४७ ॥ ___ यथा परमाणोरतधावियैकत्वपरिणामविशेषादेकत्वं भवति, तथैव तसावितपरिणामविशेषादेव अनन्ताणुमयस्सन्यस्यापि एकत्यं स्यादिति दर्शयन् सगस्तवादरस्कन्यशीर्षस्थानीयमीपत्माग्भारनामकं पृथिवीमन्यं प्ररूपयतिमूलम्-एगा सिद्धी, एगे सिद्धे, एगे परिनिव्याणे, एगे परिनिव्वुए। रोधी कोई से दो स्पर्श रहते हैं तथा इल की सिद्धि इसके कार्यभूत घटादिकों से होती है ऐसा यह परमाणु एक संख्यावाला होता है यह एकता इसमें स्वरूपसे कही गई है अथवा-समय, प्रदेश और परमाणु यद्यपि अनन्त होते हैं परन्तु फिर भी इनमें से अनन्तभेदात्मक पक एक में तुल्यरूपताको अपेक्षा लेकरले एकता है ऐसा जाना चाहिये।ग०४७॥ जिस प्रकार से परमाणु में तथाविध एकत्वपरिणामरूप विशेपत्ता को लेकर एकत्व होता है उसी तरह से तथाविध एकत्वारिणामल्प विशेषता को लेकर अनन्ताणुमय स्कन्ध में भी एकता हो लपाती है इसी पात को प्रकट करने के लिये समस्त बादर स्कन्धों में प्रधान जो ईत्माग्भार नाम का पृथिवी स्कन्ध है उसकी सूत्रकार प्ररपणा करते हैं___ 'एगा सिट्टी, सिद्धे, एगे, परिनिव्याणे, गे परिनिए ॥४८॥ मृलार्थ-सिद्धि एक है, सिद्ध एक है, परिनिर्वाण एक है, परिनिवृत्त एक है। ४८॥ પણ બે વિરોધી સ્પર્શ વિદ્યમાન હોય છે. તેથી સિદ્ધિ તેના કાર્યભૂત ઘટાદિકેથી થાય છે. તે પરમણ્યમાં તેના સ્વરૂપની અપેક્ષાએ એકત્વ પ્રકટ કરવામાં આવ્યું છે. અથવા-જે કે સમય, પ્રદેશ અને પરમાણુ અનંત હોય છે, પરંતુ અનેક દાત્મક એક એકમાં (પ્રત્યેકમાં) તુલપરૂપતા હોવાને લીધે તેમાં देता ही छे, म समj. ॥ ४७ ।। જે પ્રકારે પરમાણુમાં તથાવિષ એકત્વ પરિણામરૂપ વિશેષતાની અપે. ક્ષાએ એકત્વ હેય છે, એ જ પ્રમાણે તથાવિધ એકત્વ પરિણામરૂપ વિનાની અપેક્ષાએ અનન્તાણમય અધોમાં પણ એકતા હોઈ શકે છે તેથી સમસ્ત બાદર સકમાં મુખ્ય એ જ ઈષાશારા નામના પૃથ્વી કપ દે, તેની સૂત્રકાર પ્રરૂપણ કરે છે— " पगा सिद्धि, एो सिद्ध, एगे परिनियाणे, एगे परिनिचुए " ॥४८॥
SR No.009307
Book TitleSthanang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages706
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size41 MB
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