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________________ २१ २८ ४२६ सूत्रकृताशी हिड्गुलकं मनःशिला, शशकाओने इौ रत्नविशेषौ, प्रबालो विद्रुमः, 'अवर्भपडलब्भवालयबायरकाए, अभ्रस्टलाभ्रवालुकावादरकाय :, तत्र-अभ्रपटलं गगन स्य जलावसाय: अभ्रवाल का तु जलावसाययुक्ता धूलि', बादरकायः पृथिवीभेदः, 'मणिविहाणा' मणिविधानाः 'गोमेज्जए य रयए अंके फलिहे य लोहिया पखेय' गोमेद्यकं च रजतम स्फटिकञ्च लोहिताख्यञ्च, 'मरगयमसारगल्ले भुयमोयगांदणीले य' मरकतो मसारगल्लो भुनमोचकमिन्द्रनीलच । 'चंदणगेरुयहपगम्भपुलए सोगधिए य बोद्धव्वे' चन्दनगेरुकहंसगर्भपुलाक सौगन्धिकं च बोदध्यम्। 'चंदप्पभ-वेरुलिए-जलकंते-सूरकते य' चन्द्रप्रभंड्य-जलकान्त:सूर्यकान्तश्च । उपर्युक्तगाथासु ये ये-उक्तास्तेभ्य आरभ्य सूर्यकान्तपर्यन्वयोनिषु समुत्पन्नाः समुत्पत्स्यमानाच ते ते पृथिवीजीवाः। 'एयाओ एएसु (११) चांदी (१२) स्वर्ण (१३) वज्र (१४) हरताल (१५) हिंगुलक (१६) मैनसिल (१७) शासक (१८) अंजन (१९) प्रवाल (२०) अभ्रपटल (आकाश का जलावसाय) (२१) अभ्रवालुका जलावसाय से युक्त धूल (ये चादर पृथ्वीकाय के भेद हैं) अब मणियों के भेद कहते हैं (२२) गोमेद (२३) रजत (२४) अंक (२५) स्फटिक (२६) लोहिताक्ष (२७) मरकत (२८) मसारंगल्ल (२९) भुजपरिमोचक (३०) इन्द्रनील (३१) चन्दन (३२) गेरुक (३३) हंसगर्भ (३४) पुलाक (३५) सौगंधिक (३६) चन्द्रप्रभ (३७) वैडूर्य (३८) जल कान्त और (३०) सूर्यकान्त, ये सब मणियों के प्रकार हैं। (७) बाढ (८) संY (6) diy (10) सु (११) यादी (१२) (13) 400 (१४) २ता (१५) डिग।(१६) भैनसन (१७) शास (१८) मन (१८) ana (२०) भन५८६ (AIRAL relaसाय) (२१) अबाबु oral વસાયથી યુક્ત ધૂળ (આ બાદર પૃથ્વીકાયના ભેદે છે. હવે મણિના ભેદ वामां भावे छे. (२२)गामे (२३) २००त (२४) भ3 (२५) २५टि: (२६) सासिताक्ष (२७) भ२४1 (२८) भसार ८ (२८) भु०८ परिमाय (30) छन्द्र नla (३१) यहन (३२) ३४ (33) सम (३४) yा (34) सौगघि (३६) यन्द्र (३७) पेड्यः (3८) Asia मन (३८) सू त . मा મણિના પ્રકારે છે,
SR No.009306
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages791
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size45 MB
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