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________________ समयावधिनी टीका द्वि. थु. अ २ क्रियां स्थान निरूपणम् '१७३ 3 भगिणीहि वो भज्जादि वा' मातृभिर्वा पितृ बी-पिईहि वा माईहि मित्रभ्रातृमत्र निम-मार्यामित्र 'कुत्तेहि वाताव वा' पुत्रैर्वा दुहितृभि स्नुपामित्र 'सद्धि, संवसमाणे सार्ध संत्र समारभ्यस्तेन सह गृहादासं कुर्वन् पुरुषः 'मिचममित्त मेव मन्नमणे' मित्र स्वभावतः भ्रमित्रम् मन्यमानः- अवगच्छन् “मित्ते इयपुचे' मित्र देवपूर्व', 'वह' मंति 1 }: 1 bi " अयमाशय: - मावामित्रं पिता चेति, स्त्रभावात् त्रियं हितम् । कार्यकारणान्ये, भवन्ति हितबुद्धयः ॥ १ ॥ इत्युक्याऽनुभवेन च मात्रादयः स्वमारतो मित्राणि भवन्ति । परन्तु कश्चिदाशयदोपात - मित्रमेव अमित्रं जान्नू खभावतो मित्रमपि हन्ति । हन्यमानश्च न दृष्टिविसमतिक्रमति, पश्चात्स एव ज्ञातवन्तः पञ्चात्तापं करोति । एतादृशकोई पुरुष माता, पिता, भाई, भगिनी, स्त्री, पुत्र, कन्या और पुत्रवधूं के साथ निवास करता है । वह अपने स्वभावतः मित्र ( हितैषी) को शत्रु समझ बैठता और उसका घात कर डालता है । कहा भी है-" 'माता मित्रं पिता चेति' इत्यादि । माता मित्र और पिता, यह तीनों स्वभाव से ही हितकारी होते हैं । किन्तु अन्य लोग प्रयोजन विशेष से भी हिल करने के इच्छुक बन जाते हैं ॥ १ ॥ 3 " इस उक्ति के अनुसार माता-पिता आदि स्वभाव से ही । मित्र होते हैं, किन्तु कोई विचार के दोष से मित्र को ही शत्रु समझता हुआ उसका घात कर डालता है । यह उसका दृष्टि विपर्यास है। उसे जय वास्तविकता का पता चलता है तो पश्चात्ताप करना पडता अर्ध पु३ष भाता, पिता; लाई, डेन' खी, पुत्र, उन्या ने पुत्रवधूनी સાથે રહેતે હાય છે. તે પેાતાના સ્વાભાવિક મિત્ર-હિતેચ્છુને શત્રુ માનીલે अने' तेने!' वृध उरी नाथे छे, छुपा छे, 'माता मित्र' 'पिताचेति' इत्याहि भाता, मित्र, मने पिता मे स्वभावथी हित ४२वावाजी હોય છે, પરંતુ અન્ય લેાક પ્રત્યેાજન `વશાત્ 'હિત કરવાની બુદ્ધિવાળા 1 होय ॥ { આ કથન પ્રમાણે માતા, પિતા વિગેરે' સ્વભાવથી જ મિત્ર હૈાય છે. પરંતુ કેાઈ પુરૂષ પેાતાના વિચારના દ્વેષથી મિત્રને જ શત્રુ માનીને તેને ઘાત કરી નાખે છે, આ તેને દૃષ્ટિ વિસ છે. તેને જ્યારે વાસ્તવિક્તાની
SR No.009306
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages791
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size45 MB
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