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सूत्रकृताशस्त्र ' अन्वयार्थः-(एवं) एवम्-भवन्मते (ण मिज्जति) न मीयन्ते-जीवानां मुखित्व-दुःखित्व व्यवस्थाया अपि उपपादनं कर्तुं न शक्यते, जीवानां कूटस्थनित्यत्वात् व्यापकत्वाच । (ण संसरंती) न संसरन्ति ते-तथा स्वकर्मप्रेरितजीवानां नाना'न मिजंति-न भीयन्ते' सुखी एवं दुःखी की जो व्यवस्था देखी जाती है, उसकी संगती नहीं हो सकती क्योंकी आपका माना हुआ आत्मा कूटस्थ नित्य, और व्यापक है। 'ण संसरंति-न संसरन्ति' अपने अपने कर्म प्रेरित जीवों का नाना गतियों में गमन और आगमन भी नहीं हो सकता क्यों की वे निष्क्रिय है 'न माहणा खत्तियवेसपेसा-न ब्रह्म गाः क्षत्रियवैश्यप्रेष्या ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूदका भी भेद नहीं हो सकता क्यों कि 'असंगोययं पुरुषः' इस श्रुति से. आत्मा एकान्त रूप से असंग कहा गया है 'कीटा य पक्खी य सरीसिवा यकीटाश्च पक्षिणश्च सरीसृपाश्च' कीट, पतंग, और सरीसृप (रेंगकर चलने वाला प्राणी) का भेद भी नहीं बन सकता क्यों की जीव एक ओर क्रियाहीन है 'नराय सव्वे तह देव लोगा-नराश्च सर्वे तथा देवलोका' मानव और देव आदि की व्यवस्था भी संगत नहीं हो सकती, क्योंकि जीव को एक क्रिया शुन्य व्यापक और निःसंग मानते हो, अतएव एकान्तवाद रमणीय नहीं है। आखिरमें सभी को अनेकान्तवाद का ही शरण लेनी पड़ती है॥४८॥
मावत 'न मिजंति-न मीयन्ते' सुमी मी विसरेनी रे व्यवस्था हेमવામાં આવે છે. તેની સંગતી થતી નથી કેમકે આપે માનેલ પુરૂષ (આત્મા) ३८२५ नित्य भने व्या५४ छ. 'ण संसरंति-न संसरन्ति' यात पाताना उभथा પ્રેરિત જીવેનું, અનેક ગતિમાં ગમન અને આગમન પણ થઈ શકતું 'नथी भ निय छे. 'न माहणा खत्तियवेसपेसा-न ब्राह्मणाः क्षत्रियवेश्यप्रेष्याः' माझy, क्षत्रिय, वैश्य भने शूदना ले ५ नथी. उमडे'असंगोह्यय-पुरुपः' मा श्रुति क्यनथी मात्मा 21-1३५था अस1.अपामा
आवेस छे. कीटा य पक्खी य सरीसिवा य'-कीटाश्च पक्षिणश्च सरीसृपाश्च' हीट , પતંગ અને સરીસૃપ (ઠેકીને ચાલવાવાળા પ્રાણ) ને ભેદ પણ થતું નથી. કેમકે -94 मे मन. या बिनाना छे. 'नरा य सव्वे तह देवलोगा-नराश्च सर्वे तथा देवलाकाः' भास अन व विरेनी व्यवश्था पर संगत यती नथी. भो
જીવને એક ક્રિયા શૂન્ય વ્યાપક અને નિઃસંગમાને છે તેથી જ એકાન્તવાદ / રમણીય નથી. આખરે બધાને અનેકાન્તવાદનું જ શરણ ગ્રહણ કરવું પડે છે. ૪૮