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समयार्थबोधिनी टीका वि. श्रु. अ. ६ आर्द्रकमुने!शालकस्य संवादनि० ५४९
अन्वयार्थः--आई को गोशाळकायोत्तरयति-हंदो गोशालक ! नाऽहं कमपि निन्दामि, अपि तु माध्यस्थ्य मास्थाय निर्मलदृष्टया वस्तुस्थिति निरूपयामि । ते दार्शनिकाः स्वमतं पुष्यन्त स्तुष्यन्तो निन्दन्ति परान्, तदायशास्त्रान्तःपाति तत्कथनमेव दर्शयामि । तदुक्तम्हँसी करते हैं 'उ-तु' किन्तु 'गरहमाणा-गहमाणाः' निन्दा करते हुए 'अक्खंति-आख्यान्ति' वे कहने हैं कि 'सतो व अस्थि-स्वतश्चास्ति' मेरे दर्शन में प्रतिपादित अनुष्ठान से ही धर्म और मोक्ष होता है 'असतो य नस्थि-अस्वत श्च नास्ति' दूसरों के दर्शनों में कथित अनु. छानसे धर्म अथवा मोक्ष नहीं होता है । 'गरहामो दिहि-गहामहे दृष्टिम्' हम उनकी उस एकान्तदृष्टि की नहीं करते हैं पदार्थ सत् ही है या नित्य ही है, इत्यादि एकान्तवादकी निन्दा करते हैं। इसके सिवाय
और क्या कहते है ? जो भी कोई एकान्त दृष्टि का अवलम्बन करके वस्तुस्वरूप का प्रतिपादन करता है, उसका मतिपादन यथार्थ नहीं हैं। ऐसा हम कहते हैं । 'ण गरहामो किचि-नगहीमहे किञ्चित् इसमें किसी की निन्दा नही है ॥१२॥
__ अन्वयार्थ-वे श्रमण और माहन एक दूसरे की निन्दा और हंसी करते हैं। वे कहते हैं कि मेरे दर्शन में प्रतिपादित अनुष्ठान से ही धर्म और मोक्ष होता है, दूसरों के दर्शनों में कथित अनुष्ठान से धर्म• 'उ-तु' ५२तु 'गरहमाणा-गर्हमाणा.' निही ४२॥ २४! 'अक्खंति-आख्यान्ति' तमा छ -'सतो य अत्यि-स्वतश्चास्ति' भा। शनमा प्रतिपादन रेत अनुहानथी । म भने भाक्ष थाय छे. 'असतो य त्थि-अस्वतश्च नास्ति' બીજાઓના દર્શનેમાં કહેવા અનુષ્ઠાનથી ધર્મ અથવા મેક્ષ મળતો નથી, 'गरहामो दिदी-गमो दृष्टिम्' अमे तमानी मा मे ष्टिनी કરીએ છીએ. પદાર્થ સતજ છે, અથવા નિત્ય જ છે, વિગેરે એકાન્તવાદની નિદા કરીએ છીએ આ શિવાય બીજું શું કહીએ છીએ ? જે કંઈ એકાન્ત દષ્ટિનું અવલમ્બન કરીને વસ્તુ સ્વરૂપનું પ્રતિપાદન કરે છે, તેઓનું પ્રતિपाहन या नथी. मे प्रमाणे छु'. 'ण गरहामो कि चि'-न गर्दामहे किचित्' मामा धनी ५ निहाना मा नथी. 100 १२॥
* અન્વયાર્થ–તે શ્રમણ અને બ્રાહ્મણ પરસ્પર એક બીજાની નિંદા અને મશ્કરી કરે છે તેઓ કહે છે કે-મારા શાસ્ત્રમાં પ્રતિપાદિત કરેલ અનુષ્ઠાનથી જ ધર્મ અને મોક્ષ થાય છે. બીજાઓના શાસ્ત્રોમાં કહેવા અનુષ્ઠાનેથી ધર્મ