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________________ ५३६ स्त्रशतानने (अमगुस्से सु) अमनुष्येषु-मनुष्यभिन्नेषु पाणिषु (णो तहा) नो तथा-मनुष्य वदन्ययोनौ कृतकृत्यत्वं न भवति तत्र धर्माराधनामावादतो मनुष्य एव सिद्धिगति भांग भवतीति (मे) मया (सुर्य) श्रुतं भंगयत्समीपे साक्षात् श्रवणगोचरोकृतमिति ॥१६॥ ___टीका-अथ सुधर्मस्वामी जम्बूस्वामिन कथयति-हे जम्बूः! 'उत्तरीए' लोकोत्तरीये जिनशासने 'इथे' इद-वक्ष्यमाणं 'सुय' श्रुतं मया, किं श्रुनम् ? इत्याह-धर्माराधनयोग्या एव मनुष्याः ‘णिद्विगट्टा' निष्ठितार्थाः कृतकृत्याः मोक्षगामिनो भवन्ति । वा-अथवा अवशिष्टकर्माणः केचन कर्मसद्भावात् सम्यक्त्वादि सामग्री सद्भावेऽपि तद्भवे मुक्ता न भवन्ति किन्तु 'देवा' देवाः-यो धर्माधो देनाः 'एयं' एतत् पूर्वोक्त मोक्षगामित्वम् ‘एगेति' एकेपाम्-केपाश्चिन् धर्म आदि विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार की कृन. कृत्यता किन्हीं किन्हीं मनुष्यों को ही प्राप्त होती है, मनुष्य से भिन्न योनिक प्राणियों को प्राप्त नहीं होती। क्योंकि वे वैसा धाराधन नहीं कर सकते। अतएव मनुष्य ही सिद्धि का भागी होता है। यह मैंने भगवान् के समीप साक्षात् सुना है ॥१६॥ टीकार्थ-सुधर्माचानी जम्बू स्वामी से कहते हैं-हे जम्बू ? लोको सर जिनशासन में मैंने यह लुना है कि धर्माराधन के योग्य ही मनुष्य मोक्षगामी होते हैं अथवा जिनके कर्म शेप रह जाते हैं, वे सम्यग्दर्शन आदि सामग्री का सदभाव होने पर भी कर्मों के मद्भाव के कारण उसकी परिपूर्णता न होने से उसी भवमें मोक्ष नहीं जाते किन्तु सौधर्मादि देव लोक में देव होते हैं। किन्हीं किन्हीं मनुष्यों को ही मोक्ष प्राप्ति होती है मनुष्य से भिन्न अन्य प्राणी उसी भव में कृतकृत्य नहीं જ સિદ્ધિને પામનાર બને છે એ મે ભગવાનના મુખેથી સાક્ષાત્ સાંભળ્યું છે. ૧૬ ટીકાર્થ––સુધર્માસ્વામી જબૂરવા મને કહે છે કે– હે જમ્બુ લોકોત્તર જીન શાસનમાં મેં એવું સાંભળ્યું છે કે-ધર્મારાધનને ચગ્ય મનુષ્ય જ મોક્ષ ગામી હોય છે અથવા જેમના કર્મ શેષ રહી જાય તેઓ સમ્યક્દર્શન વિગેરે સામગ્રીને સદ્ભાવ હોય તો પણ કર્મોના સદુભાવને કારણે તેની પરિપૂર્ણતા ન હોવાથી એજ ભવમાં મોક્ષ પામતા નથી. પરંતુ સૌધર્મ વિગેરે દેવલોકમાં દેવ થાય છે. કેઈ કઈ મનુષ્યોને જ મોક્ષની પ્રાપ્તિ થાય છે. મનુખ્યથી ભિન્ન અન્ય પ્રાણી એજ ભવમાં કૃતકૃત્ય થઈ શકતા નથી. કેમકે
SR No.009305
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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