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________________ ६० सूत्रकृतार्कसूत्रे मोहपाशकूपपातकाः वान्धवाः पूर्वोक्तरीत्या साधुं तयासुशिक्षर्यति, यथा तेषां संगेन बद्ध व विभ्रान्तः गुरुकर्मा साधुः मोक्षदायिनीमपि मत्रज्यां परित्यज्य गृहपाशे एवानुबध्नात्यात्मानम् । इति भावः ॥९॥ 1 १ 3 ४ मूलम् - जहा रुत्रखं वणे जायं मालया पडिवंधई । દ एवं पडिवति णातओ असमाहिला ॥१०॥ छाया - यथा वृक्षं दने जातं मालुका प्रतिवचनाति । एवं ते प्रतिबध्नन्ति ज्ञातयो असमाधिना ॥ १०॥ रस्सी से बंधे पशु को रस्सी पकडने वाला पुरुष इच्छानुसार से जाता है, उसी प्रकार बन्धुबान्धवों के बिलापरूपी मोहपाश में आबद्ध सत्वहीन साधु घर ले जाया जाता है । आशय यह है कि मोह के कूप में पटकने वाले बान्धवजन पूर्वोक्त प्रकार से साधु को इस प्रकार सीख देते हैं जिससे उनके संग से बद्ध जैसा भ्रान्त गुरुकर्मा साधु मोक्षदायिनी दीक्षा को भी त्याग कर गृह "के बन्धन में बंध जाता है ||९|| शब्दार्थ- 'जहा-यथा' जैसे 'वणे जायं वने जातम्' वन में उत्पन्न हुवा 'रुक्खं - वृक्षम् ' वृक्ष को 'मालुया- मालुका' लता - वेल 'पडिबंह-प्रतिबध्नाति' वेष्टित हो जाती है ' - खलु' निश्चय ' एवं - एवम्' इसी प्रकार 'जातो ज्ञानयः' ज्ञातिवाले अर्थात् कुटुंबिजन 'असमाहिणा- असमाधिना' अल्प सत्व वाले उस साधु को 'पडियंति - प्रतिवध्नंति' बांध लेते हैं ॥१०॥ વડે ખાધેલા પશુને દોરડું' પકડનાર માણસ પેાતાની ઈચ્છાનુસાર દારી જાય છે, એજ પ્રમાણે સગાં-સ્નેહીએના વિલાપ રૂપ માહુપાશથી જકડાયેલા સહીન સાધુને, તે ઘેર લઈ જવામાં સફળ થાય છે. આ કથનનુ' તાત્પર્ય એ છે કે મેહંરૂપ કૂવામાં હડસેલનારા બન્ધુજને તે નવદીક્ષિત સાધુને એવી રીતે સજાવે છે કે તે ભ્રાન્ત, ગુરુકર્માં સાધુને મેક્ષદાયિની પ્રવ્રજયાના પણ ત્યાગ કરીને ગૃઢના મન્ધનમાં બંધાઈ જાય છે લા शद्वार्थ–'जहा-यथा' देवी रीते 'वणे जायं वने जातम्' 'वनभां उत्पन्न थयेस 'रुक्ख-वृक्षम्' 'उने 'मालुया -मालुका' सता- वेस 'पडिबंध - प्रतिबुध्नाति ' वीरणाई भयछे 'णं-खलु' निश्चय 'एवं - एवम्' मा प्रभा 'णातयो - ज्ञातयः ' ज्ञातिवाजा अर्थात् कुटु भिन्न 'अमांहिणा - असमाधिना' अस्य सत्त्ववाना ते स.धुने 'पडिवंधंति - प्रतिबध्नन्ति' गांधी सेहे ॥१०॥
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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