SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्रकृतागसूत्रे मूलम्-ज किं च अणगं तात तंपि सव्वं लसीकतम्। हिरणं ववहाराइ तेषि दाहासु ते वयं ॥८॥ छाया-यत्किचिच त्राणं तात! तस्सर्वं हि समीकृतम् । हिरण्यं व्यवहारादि तदास्यामो वयं वसु ॥८॥ अन्वयार्थ-(तात) हे तात हे कुडुम्बरक्षकपुत्र (जं किंचि) यत् किंचित (अणगं) ऋणं (तं वि सम्बं) तदपि सर्वम् अस्माभिविभज्य (समीकतं) समीकृतम्-समभागेन व्यवस्थापितम् (क्वहाराइ) व्यवहारादिः (हिरण) हिरण्यसुवर्णादिकं (तंपि) तदपि (ते) तुभ्यम् (वयं) वरम् (दाहामु) दास्यामा त्वदीयव्यवहारोपयोगिसुवर्णादिकं दास्याम इति भावः ॥॥ घर पर ही चलो । संयम साधना का यह अवसर नहीं है। जब अवसर आवेतो चिना किसी बाधा के तुम संघम का अवश्य अनुष्ठान करना ॥७॥ शब्दार्थ--'तात-तात' हे पुन्न ! 'जं किंचि अणगं-यत् किंचित् ऋणम्' जो कुछ ऋण था 'ते वि सव्यं तदपि सर्वम्' वह भी लव 'समीकतं-समीकतम्' हमने विभाग कर बराबर कर दिया है 'वहाराइव्यवहारादिः' व्यवहार के योग्य जो 'हिरणं-हिरण्यम्' सुवर्णादिश है 'तं पि-तदपि' वह भी 'ते-तुभ्यम्' तुझको 'वयं-वयम्' हम लोग 'दाहायु-दास्थामा देंगे अतः तुमको घर ही चलना उचित है ॥८॥ अन्वयार्थ-हे पुत्र ! हे कुटुम्ब के रक्षक ! जो ऋण चढाथा, उस सब को हम लोगों ने वशंट कर वराबर कर लिया है। व्यवहार के लिए तुम्हें जो हिरण्य (चांदी) सुवर्ण आदि चाहिए वह हम तुम्हें देंगे॥८॥ ત્યારે કઈ પણ પ્રકારના અવરોધ વિના તું અવશ્ય સંયમની આરાધના કરજે. ગાથા ના शvatथ-'तात-तात' हे पुत्र! ‘ज किंचि अणगं-यत् किंचित्ऋणम्' ? ४४४ अय तु तं वि सव्वं-तदपि सर्वम्' ते ५ मधु 'समीकतं-समीकृतम्' अभे विमा N मराभ२ ४ी दाधु छ 'ववहाराइ-व्यवहारादिः', व्यवहारमा याय २ हिरणं-हिरण्यम्' सुवारि छे. 'तपि-तदपि' ते ५५ 'ते-तुभ्यम्' तने 'वयं-वयम्' समे वो 'दाहामु-दास्य म.' भापीशु थी तभ.२ ३२ આવવું જ ચગ્ય છે, તો સૂત્રાર્થ–હે પુત્ર! હે કુટુંબના આધાર! તારે માથે જે અણ (દેવું) વધી ગયું હતું, તે અમે સૌ કુટુંબીઓએ ભાગે પડતું ચુકવી દીધુ છે તારે વ્યવહાર ચલાવવા માટે તારે જે સુવર્ણ, ચાંદી આદિની જરૂર હોય તે અમે तने भाप गाथा ८॥ ,
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy