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________________ सूत्रकृताने प्रकरणमुपसंहरन्नाह-सूत्रकारः-'इच्चेवणं सुसेहति' इत्यादि । मूलम् इच्छेवणं सुसेहंति कालगाये लमुटिया । विवद्धो नाइसंगेहि तओऽगार पहावइ ॥९॥ छाया-इत्येव सुशिक्षयन्ति कारुण्यं समुपस्थिताः। विवद्धो ज्ञातिसंगेन ततोऽगारं प्रधावति ॥९॥ अन्वयार्थः-(ग) खलु (कालणीये समुट्ठिया) कारुण्ये समुपस्थिताकारुण्यमुत्पादयंतः (इच्चेव) इत्येवं पूर्वोक्तरोत्या (सुसेहति) सुशिक्षयंति स चापरिणतधर्मा, नवमानितः (नाइसंगेहि। ज्ञातिसंगैः (दिवद्धो) विवद्ध मातापिदपुत्रकलादिमोहितः (तो) ततस्तदनन्तर (अगारं) अपारं गृहं (पहावा) अधावति गच्छतीत्यर्थः ॥९॥ प्रकरण का उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं 'इच्चेव ' इत्यादि। शब्दार्थ-'-खलु' निश्चय 'कालुणिये समुष्टिया'-कारुण्ये समुपस्थिता' करुणाजनक बन्धु वर्ग के 'इच्चेवं-स्त्येवम्' इस प्रकार के 'पूर्वोक्त रीति से 'सुलेहति-सुशिक्षयन्ति' साधु को शिक्षा देते है अर्थात् समझाने पर 'नाइसंगेहि-ज्ञातिसंगैः' ज्ञातिसंग से 'विवद्धोविषदः' बंधा हुआ अर्थात् मानापिता पुत्र कलत्रादि में मोहित होकर 'तओ-तता' उस समय 'अगारं-अगारम्' घर की ओर 'पहावा-प्रधा. वति' जाता है ॥१॥ . अन्वयार्थ-करुणा से परिपूर्ण ज्ञानिजन इस प्रकार साधु को सिख लाते हैं । वह नवदीक्षित और अपरिणतधर्मा साधु ज्ञातिजनों के मोह में फंस कर घर चला जाता है ॥९॥ हवे ॥ ४२ने ५ 8२ ४२ ॥ सूत्र॥२ ४३ छ-'इच्चेएण' त्याह शहा- 'ण-खलु' निश्च५ ‘क लुगिये समुडिया-कारण्ये समुपस्थिताः' ४३४४ मधु ना इच्छेव-इ-येवम्' मा ४२ना पूति शतथी 'सुसेहति-सुशिक्षयन्ति' साधुन शिक्षा है छे ? अर्थात् समताथा 'नाइसंगहि-ज्ञातिसंगैः' शातिसगथी विवद्धो-विवद्धः' मधायेसा अर्थात् माता, पिता पुत्र, ४त्र, गेरेभा माहित न 'तो-तन.' ते समये 'अगारं-अगारम' घरनी त२५ 'पहावइ-प्रधावति' नय छे. ॥६ સૂત્રાર્થ કુટુંબીઓ અને સગાં-સંબંધીઓ આગળ વર્ણવ્યા પ્રમાણેના કરુણાજનક વચને વડે તે નવદીક્ષિત સાધુને સંસારમાં પાછા ફરવા માટે થશાવે છે. તેને પરિણામે નવદીક્ષિત અને અપરિણતધર્મ સાધુ જ્ઞાતિજનોના
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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