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________________ . . सूत्रकृताङ्गसूत्रे मोक्षार्थ प्रवर्तते इति, बालकीर्य तु जीवस्य दुः वदायि, दुःखमुपभुञ्जानस्य बालबीर्यवतोऽशुमस्थानं नरकादिकमेव बर्द्धते इति भावः ॥११॥ मूलम्-ठाणी निविहठाणाणि चइरसंति ण संसओ। अणियत्ते अयं वाले वायरहिं सुहीहियं ॥१२॥ छाया--स्थानिनो विविधस्थानानि त्यक्ष्यन्ति न संशयः। .. अनियतोऽयं वासो ज्ञातकः सुहृदुनिश्च ॥१२॥ अन्धयार्थ:---(ठाणी) स्थानिनः-स्थानयन्तः-इन्द्रचक्रवत्यादयः (विविहठाणाणि चहस्संति ण संप्तओ) विविधस्थानानि-नानापकारकोत्तममध्यमस्थानानि ही अंगीकार करके विचरते हैं, मोक्ष के लिए ही प्रवृत्ति करते हैं। इसले विपरीत जो छालधार्य है, वह दुःख देने वाला है। दुःख को भोगने वाला बालवीर्यवान् पुरुष नरक आदि गतियों को ही पढता है ।१११ 'ठाणी' इत्यादि । शब्दार्थ-'ठाणी-स्थानी' उच्चपद पर रहे हुवे सभी विविह ठाणाणि चइस्संति ण संसओ-विविधस्थानानि त्यक्ष्यन्ति न संशयः' अपने अपने स्थानों को छोडदेंगे इसमें संदेह नहीं है 'णाइएहि य सुहीहि' जातिभिः सुहृद्भिश्च तथा ज्ञाति और मित्रों के साथ 'अयं दासेअयं वासः' जो संवाल है वह भी 'अणियते-अनियतः' अनियत है ॥१२॥ ___अन्वयार्थ-उन्तम स्थान के धनी इन्द्र चक्रवर्ती आदि नाना प्रकार के उत्तम मध्यम अधम स्थानों को त्याग देगे, इसमें संशय नहीं है। માણની કામનાવાળા મેક્ષ માગને જ સ્વીકાર કરીને વિચરે છે. તેઓ મોક્ષ માટે જ પ્રવૃત્તિ કરે છે. આનાથી વિપરીત જેઓ બાલવીર્ય છે, તે દુઃખ આપવાવાળા હોય છે, દુ ખ ભેગવનાર બાલવીર્યવાળા પુરુષ નારક વિગેરે ગતિનેજ વધારે છે. ૧૫ : 'ठाणी' इत्याहि , शाय-'ठाणी-स्थानी ! २५ ५६ ५२ २९सा अधा. 'विविहठाणाणि अस्संहिण संसओ-विविधस्थानानि त्यक्षन्ति न संशय: पति याताना स्यानान छोडीशे तेभा सशय नथी. 'णाइएहि य सुहीहि-ज्ञातिभिः सुहद्विश्च' तथा शाति भने मित्रोनी साथै 'अयं वासे-अयं वासः'२ पास पर 'अणियते-अनियतः' भनियत छे. ॥१२॥ - અન્વયાર્થ–ઉત્તમ સ્થાનવાળા ઈન્દ્ર, ચકવર્કત વિગેરે અનેક પ્રકારના ઉત્તમ, મધ્યમ, અને અધમ સ્થાને ત્યાગ કરશે તેમાં સંશય નથી, જ્ઞાતિ
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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