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________________ { ही समयार्थवोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ६ उ. १ भगवंतो महावीरस्य गुणवर्णनम् ४९३ स्वस्याऽतिशय स्वरूपत्वात्र, सुदर्शनः - सुष्ठु शोभनं जम्बूनदमयतया रत्नबहुलतया च मनो निर्वृत्तिकरं दर्शनं यस्य स सुदर्शनः४, स्वयंप्रभः = रत्नबहुलतया स्वयम् आदित्यादेखि प्रभा - प्रकाशो यस्य स स्वयंप्रभः ५, गिरिराजः - सर्वेषु गिरिषु उच्चत्वेन तीर्थंकरजन्माभिषेकाश्रयतया च राजा- गिरिराजः६, रत्नो, चय. - रत्नानां पुञ्जत्वाद७, शिलोच्चयः ८, मध्यः - लोकस्य मध्यवर्त्तित्वात्९, नाम: - लोकस्य नाभिभूतत्वात् १०, आकस्मिकः = अकस्माद् दृष्टौ पतितायां सत्यां - हर्षातिशयजनकत्वात्११, सूर्याssवी सूर्यावर्तनकस्यात् १२, सूर्यावरण:(४) सुदर्शन जाम्बूनदमय होने से तथा रत्नबहुल होने से उसका दर्शन मन को आनन्दप्रद होता है । (५) स्वयं प्रभ-रत्नों की बहुलता होने के कारण वह स्वयं सूर्य आदि की भाँति प्रकाशयुक्त है । (६) गिरिराज - समस्त पर्वतों में सर्वाधिक ऊंचा होने से और तीर्थकरों के जन्माभिषेक का स्थल होने से पर्वतों में राजा के समान है । (७) रत्नोच्चय-रत्नों का पुंज है । (८) शिलोच्चय - शिलाओं का समूह होने से । (९) लोक का मध्य होने से मध्य है - + 1 (१०) नाभि - लोककी नाभि के समान । (११) आकस्मिक - अकस्मात् दृष्टि पड़ते ही अतिशय हर्षजनक । (१२) सूर्यावर्त - सूर्य उसकी प्रदक्षिणा करने से (૪) સુદૅશન-જામ્બુનઃમય હાવાથી તથા અનેક રત્નાથી સપન્ન હાવાથી તેનાં દર્શન મનને મન દદાયક થઇ પડે છે, તેથી સુર્દેશન નામ પડ્યુ છે, (૫) સ્વયં’પ્રભ–તેમાં રત્નાની વિપુલતા હેાવાને કારણે, તે સૂર્યાદિની જેમ પ્રકાશયુક્ત હેાવાથી તેનુ' નામ સ્વયંપ્રલ છે, (૬) ગિરિરાજ-બધા પર્વ તેમાં વધારેમાં વધારે ઊંચા હેાવાથી તથા તી”કરાના જન્માભિષેકનું સ્થાન હાવાથી પતાના રાજા જેવા છે. (७) रत्नोय्यय - रत्नाना युग है. (८) शियोग्यय - शिक्षा मोनो समूह छे, (૯) લેાકનેા મધ્ય હાવાથી તે મધ્ય એ પ્રમાણે કહેવાય છે. (१०) नालि सोनी नालि सभान छे, (૧૧) આકસ્મિક-અકસ્માત્ દૃષ્ટિ પડતાં જ અતિશય હજનક છે, (१२) सूर्यावर्त्त - सूर्य तेनी अक्षिष्या उरे छे तेथी आा, नाभ पड्यु' है,
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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