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सूत्रकृताङ्गसूत्रे ६ अन्वयार्थ:- (एवं) एवम् (बहुहि) बहुमिः (फयपुव्वं) कृतपूर्वम्-पूर्व कृतम् , (ज) ये पुरुषाः (भोगस्थाए) भोगार्थाय (अभियावन्ना) अभ्यापन्ना:-सावकार्ये परायणाः (रो) सः (दासे मिइ ब) दासो मृग इव (पेसे या) प्रेग्न इव (पशुभूते व) पशुसूत इत्र-पशुममा : (ण वा केइ) न वा कश्चिद् सधिमः स इत्यर्थः॥१८॥
टीका-- एचरित्यादि । एवं' एवए-पुत्रोपगलालनपालनादिकार्य 'बहुहि' बहुभिरनेकैः पुरुपैः संसारासक्तान्तःकरणः 'करपु३' कृ पूर्वर-पूस्मिन् काले दिखलाते है-'एवं बहुहि'
शब्दार्थ--एवं-एवम्' इसी प्रकार 'सहूहि-बहुभिः' बहुत लोगों ने 'कपपुव्वं-कृतपूर्वस्' पहले किया है 'जे-ई' जो पुरुष 'भोगस्थाए-भोगा.
य' भोग के लिये 'अभियावन्ना-अभ्यापन्नाः' सावध कार्यों में आसक्त थे जो रागांध होते हैं। 'से-स' वे 'दाले मिह व-दास दासो सृग इव' दास मृग और 'पेसे दो-प्रेष्य इव' प्रेष्य के जैसा 'पसुभूतेष-पशुभृत इव' और पशु के तुल्य है अथवा 'ण वा केह-दमा कश्चित्' वे कुछ भी नहीं हैं अर्शत् सर्वाधम हैं ॥१८॥ 5. अन्वयार्थ---ऐसा पंछुतों ने पहले किया है। जो पुरुष भोगों के लिए सर्विद्य कर्मों में तत्पर हैं, वे दास और मृग के समान हैं, नौकर के समान हैं। पशु के समान हैं। उनसे अधिक अधम अन्य कोई नहीं है ॥१८॥
टीकार्थ-जिनका चित्त संसार में आसक्त है ऐसे अनेक पुरुषों ने पूर्वोक्त पुत्र को लालन पालन आदि कार्य पहले भी किये हैं। कई वर्तमान काल
छ-"एवं बहुहि त्याह---- शहाथ-एवं-एवम् मे प्रमाणे 'महुहि-बहुभिः' घg सीमे 'कयपुत्र-कृतपूर्वम्' ५3स यु छे. 'जे-ये' २ पुष 'भोगत्थाए-भोगार्थाय' सानो भाटे 'अभियावन्ना-अभ्यापन्नाः' सावध मां सासरत डाय छ, तेसारी सेम ४यु छ २ २i डाय छ, .'से-सः' ती 'दासे मिइवदासमृगाविव' हास भृग भने 'पेसे वा-प्रेष्य इव' प्रेष्यनी म 'पसभतेव-पशभूत इव' ५शुनी समान छे. अथवा 'ण वा केई-नवा कश्चित् तसा व પણ નથી અર્થાત્ સર્વથી અધમ જ છે. ૧૮ - સ્વાર્થ_એવા અધમમાં અધમ કૃત્ય સ્ત્રીને વશવર્તી બનેલા અનેક પરુષોએ પહેલાં કર્યો છે. જે લેકો ભેગોની અભિલાષાથી પ્રેરાઈને સાવ
માં પ્રવૃત્ત હોય છે, જે રાગાધ હોય છે, તેઓ દાસ અને મૃગના સમાન છેતેમને નોકરી અને પશુસમાન કહી શકાય છે. તેમના કરતાં અધિક એમ બીજે કઈ હોઈ શકે જ નહીં. ૧૮ - - -
- ટીકાઈ–જેમનું ચિત્ત સંસારમાં આસક્ત હોય છે એવા પુરુષોએ પુત્રનું લાલનપાલન આદિ પૂર્વોક્ત કાર્યો ક્ય છે, વર્તમાનમાં કરે છે અને ભવિષ્યમાં