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________________ ३५४ सूत्रकृताङ्गसूत्रे छाया -- अपि हस्तपादच्छेदाय अथवा वर्द्ध सांसोत्कर्त्तनम् | अपि तेजसाभितापनानि तक्षयित्वा क्षारसेचनानि च ॥ २१ ॥ अन्वयार्थ ~~(अत्रि हत्यपादछेदाए) अपि हस्तपादच्छेदाय - इहलोके परस्त्री संपर्कोऽपि हस्तपादच्छेदाय भवति (अदुवा ) अथवा (वद्धमते) वर्द्धमांसोत्कतननं चर्ममांसकर्तनाय भवति (अधि तेयसामितावणाणि) अपि तेजसाभितापनानि स्त्री सम्बन्ध का फल कैसा होता है, यह तो शास्त्र से ही जाना जा सकता है, किन्तु लोक में भी उसका फल अतीव दुःखजनक होता है, इस तथ्य को दिखलाने के लिए सूत्रकार कहते हैं- 'अवि हत्य' इत्यादि । शब्दार्थ –'अब हत्थपादछेदाए-अपि हस्तपादछेदाय' इस लोक में स्त्री का संबंध हाथ और पैर का छेदन के लिए होता है 'अदुवा - अथवा ' अगर 'वद्धमंसउक्कते - वर्द्धमांसोत्कर्त्तनम्' चमडा और मांस को कतरने रूप दण्डजनक होता है 'अवि तेयासितावणाणि अपि तेजसाभितापनानि' अथवा अग्नि से जलाने रूप दण्ड के योग्य होता है 'च-च' और 'तच्छिय खारसिंचनाएं - तक्षयित्वा क्षारसिंचनानि' उनके अङ्गका छेदन करके उसके ऊपर क्षार सिंचनरूप दण्ड के योग्य होता है ॥२१॥ अन्वयार्थ -- इस लोक में स्त्रियों का सम्पर्क हाथ पग के छेदन के लिए होता है, अथवा चर्म और मॉस को काटने के लिए होता है परस्त्री સ્ક્રીમ'પર્ક નું કેવું ફળ ભાગવવુ' પડે છે, તે તે શાસ્ત્રામાંથી જ જાણી શકાય છે, પરન્તુ લેાકમાં પશુ તેનું ફલ અતિ દુ ખજનક જ હાય છે, તે વાતનું हुये सूत्रार नियु रे छे. 'अनि हत्थ' इत्यादि शर्थ - 'अवि इत्यपादछेदाए-अपि हस्तपादछेदाय' या भजतभी સ્ત્રીની સાથેને સબંધ તે હાથ અને પગને કપાવી નાખવા માટે હાય 'छे. 'अडुवा - प्रथवा ' अगर 'बद्धमं उक्ते - बद्धमांसोत्कर्तनम्' याभडा भने भांने अनत्रा साया उने योग्य मने छे. 'अवि तेयसाभितावणाणि-अपि तेजसाभितापनानि' अथवा अतिथी जत्राने योग्य भने छे. 'च-च' भने 'तच्छित्र खारसिंचणाइ-तला क्षारसिंचनानि' तेना मग हेहन उरीने तेना ઉપર મીઠું' ભભરાવારૂપ દડને ચેગ્ય મને છે. તારા સૂત્રા—ખા લેાકમાં સ્ત્રીસંગમ કરનાર લેાકેારા હાથ, પગ આદિ અ ગે કાપી નાખવામાં આવે છે અથવા ચામડી અને માંસ કાપવામાં આવે છે. પરસ્ત્રી
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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