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________________ समयार्थवोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. ४ उ. १ खीपरीपहनिरूपणम् २१ मूलम् अहं तत्थे घुगो णमयंति रहकारोव गोमि आणुपुबीए । बद्धे मिए व पालेणं पंदंते विण मुखए ताहे ॥९॥ छाया--अथ तत्र पुनर्नमयन्ति रथकार इव नेमि मानुपूया। बद्धो मृग इस पाशेन रूपन्दयानोऽपि न सुच्यते तस्मात् ॥९॥ अन्दयार्थ:--(रहकारो) रथकारः (आणुपुनीए) आनुपू- क्रमश: (णेमिं व) नेलिभिव चक्रवाह्यभ्रमिरूपम् (अह) अथ (तस्थ) सत्र स्वाभिप्रेतकार्यकरणे (गमयंति) नमयन्ति (पासेणं) पाशेन (बढे) बद्धः (मिए व) मृग इन (फंदते वि) स्पन्दषानोपि मोक्षार्थम् (साहे) तस्मान (ण घुच्चइ) न मुच्यते-भुक्तो न भवतीति ।।९॥ शब्दार्थ--'रहकारी--मयकार:' रम बनाने वाला 'आणुपुछीएआनन्या' क्रमपूर्वक 'मि-नेमिमिवजह वेषि-चक कोनभाता है इसी प्रकार स्त्रियां साधुको 'अह-मथ' अपने वश में करने के पश्चात् 'तत्थ-तत्र' अपने इच्छित्त कार्य कराने में णमोच-दमयन' झुझा लेती है 'पासेणं-पाशेन' पाशले बद्धे-'पद्धः' कंधा हुआ साधु-लिए व-मृगाव' मृगके समान फंदते वि-स्पन्दमालोपि' पाशले छुटने के लिये प्रयत्न करता हुआ भी 'ताहे-तस्मात्' उल्लले 'जमुच्चए-न लुच्चले' नहीं छूटता है।९। ___अन्वयार्थ-जैले रथकार (सुधार) क्रमशः नेमि को नमाता है, उसी प्रकार नारियां साधु को अपने अधीन कर लेती हैं। तत्पश्चात् वह साधु पाराषद्ध स्वैग जैसा छुटकारा पाने के लिये फड़फड़ाला हुआ भी छुटकारा नहीं पाता ॥२॥ शहाथ-रहकारो-स्थकारः' २५ मनापावाणी आणुपुवीए-आनुपूा' म ४ णेमिक-मिमिव' म नेभी () यने नभावे छे, मेक शत मियो साधु 'अह-अथ' पाताने १२ र्या ५छी 'तत्थ -तत्र' पोतानी ४२छ। प्रभा ना ४ाय ४२११वामा ‘णमयंति-नमयन्ति' नभावी छे. 'पास्त्रेणं-पाशेन' पाशथी 'बद्धे-बद्ध.' पाये। साधु 'मिए व-मृग इव' भृगसानीभ फईते वि -स्पन्दमानोऽपि' पाशथी छूट। माटे प्रयत्न ४२ डापा छतi ५ 'ताहेतस्मात्' ते पाश मयतथी 'ण मुच्चइ-ल मुच्यते' छूटता नथी । સૂત્રાર્થ–જેવી રીતે રથકાર (સુથાર) ધીમે ધીમે નેમિને પૈડાની વાટને) નમાવીને પિડા પર ચડાવી દે છે, એ જ પ્રમાણે જિઓ પણ ધીરે ધીરે સાધુને પિતાને અધીન કરી લે છે. જેવી રીતે જાળમાં બંધાયેલું મૃગ તેમાથી છૂટવા માટે ગમે તેટલા તરફડિયાં મારવા છતાં છૂટી શકતું નથી એ જ પ્રમાણે સાધુ પણ તેના ફંદામાંથી છૂટી શકતું નથી. લા
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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