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सूवंकृताङ्गसूत्रे 'एवमप्पा सुरक्खियो होइ' एवमात्मा सुरक्षितो भवति-एवम्-अनेन स्त्रीसम्बन्धेन विरहित आत्मा सर्वेभ्योऽपायस्थानेभ्यः सुरक्षितो भवति । यतः सर्वेपां पापानां स्थानम् वनिता । अतः स्वहितविच्छता नरेण आसां संवन्धो दूरादेव त्याज्यो विष. संबन्धवत् इति ५॥ मूलम्-आमंतिय उत्सविया भिश्चु आयसा निमंतंति ।
एयाणि चेन से जीणे हाणि विरूंवरूत्राणि ॥६॥ छाया--आमच्य उच्छ्राय्य भिक्षुमात्मना निमन्त्रयन्ति ।
एतांश्चैव स जानीयात् शब्दान् विरूपरूपान् ।।६।। इस प्रकार जो आत्मा स्त्री के लम्पर्क से बचा रहता है, वही सब बुराइयों से बचा रहता है क्योंकि स्त्री समस्त पापों का स्थान है। अतएव अपना हित चाहने वाले पुरुष को इनका सम्बन्ध, विष सम्बन्ध की भांति दूर से ही त्याग देना चाहिए ॥५॥ ____ शब्दार्थ-'आमंतिय-आम' स्त्रियां साधुको संकेत देकर अर्थात् मैं आपके पास अभुक लमय आउंगी इत्यादि प्रकार से आमंत्रण देकर 'उस्सविधा-उच्छ्रार' और अनेक प्रकार के वार्तालाप से विश्वास देकर ' भिदु-भिक्षुम्' साधुको 'आयसा-आत्मना' अपने साथ लोग भोगने के लिये निमंतति-निलंत्रयन्ति प्रार्थना करते हैं अतः 'ले-स' वह साधु 'एयाणि सदाणि-एतान् शब्दान्' स्त्री संबन्धी इन शब्दों को 'विरूवरूवाणि-विल्परूपान्' अनेक प्रकार के पाशबन्धन के सामान 'जाणे-जानीयात् ' समजे ॥६॥
આ પ્રકારે જે આભા સ્ત્રીના સંપર્કથી બચી શકે છે, એજ આત્મા બધા દેથી મુક્ત રહી શકે છે, કારણ કે સ્ત્રી સમસ્ત પાપનું સ્થાન છે. તેથી આત્મકલ્યાણ ચાહતા પુરુષોએ સ્ત્રીના સમાગમને વિષ સમાન ગણીને તેનાથી દૂર જ રહેવું જોઈએ. પાપા
शहाथ - 'आमंतिय-आमन्त्र्य' लियो साधुने सहैत शने पति આપની પાસે અમુક સમયે આવીશ વિગેરે પ્રકારથી આમંત્રણ આપીને पिया-उछाय्य' मा भने प्रश्न पाता विश्वास नवीन भिक्खु -भिक्षुम्' साधुन 'आयसा-आत्मना' चातानी साथे से लासपा भाटे 'निमंतति-निमन्त्रयन्ति' प्रार्थना ४२ छे. 'से-सः' ते साधु 'एयाणि सदाणिएतान् शब्दान्' श्री समधी । शण्होने 'विरूवरूवाणि-विरूपरूपान्' भने प्रा२ना पा२१ मधमनी रेभ 'जाणे-जानीयात्' समरे ॥६॥