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________________ समयार्थयोधिभो टीका प्र.श्रु. अ. ३ उ. ४ स्खलितस्य साधोरुपदेशः. १६७ -- छाया-यथा गण्ड पिटकं वा परिपीडयेत मुहूर्त्तकम् । एवं विज्ञापनीस्त्रीषु दोषस्तत्रकुतो भवेत् ॥१०॥ अन्वयार्थः- (जहा) यथा (गंड) गण्डलघुविस्फोटका (पिलागं वा) पिट___ कं वा=गुरुविस्फोटका (मुहुत्तगं) मुहूर्त क्षणमात्रम् (परिपीलेज्ज) परिपीड येत (एवं विनवणित्थीसु) एवं विज्ञापनीस्त्रीषु सकामप्रार्थितास (तत्य) तत्र-स्त्री. संभोगे (दोसो) दोषः (कओ सिया) कुतः स्नान्नैव भवेत् यथा विस्फोटकजनित. पीडा विस्फोटकमर्दनेनापयाति क्षणमात्रेण सुखी भवति न तत्र कोपि दोष स्तथैव स्त्रीसमागमेपि न दोष इति ॥१०॥ टीका-ते यत् प्रतिपादयन्ति तदेव सूत्रकारः प्रतिपादयति । 'जहा' यथा 'गंडं' गण्डं अल्पं स्फोटकं 'पिलाग' पिटकं महास्फोटं वा 'मुहुत्तगं' मुहूर्त्तक शब्दार्थ-'जहाँ-यथा' जैसे 'गंडं-गण्ड' छोटे फुन्शी को अथवा , 'पिलागं वा-पटक वा' बडे फोडेको 'मुहत्तर्ग-मुहर्तकम्' क्षणमात्र 'परिपीलेज्जा-परिपीडयेत' वा देना चाहिये 'एवं चिन्नवणिस्थीसु-एवं विज्ञापनी स्त्रीषु' इसी प्रकार समागमकी प्रार्थना करनेवाली स्त्रीसे समागम करना चाहिये 'तत्थ-तत्र' इस कार्य में 'दोसो-दोषः' दोष 'कओसिया-कुतः स्यात्' कहां से हो सकता है ? अर्थात् नहीं होता है।१०॥ - अन्धयार्थ-घे कहते हैं-जैसे कुंलिया-फोडे को थोडी देर दयाया जाता है तो (पीच निकल जाने ले शान्ति हो जाती है ) इसी प्रकार कामभोग की प्रार्थना करनेवाली स्त्री के साथ संभोग करने से शान्ति हो जाती है। इसमें दोष कैसे हो सकता है ? ॥१०॥ ___टीकार्थ-वे अन्यदर्शनी जिस प्रकार प्रतिपादन करते हैं, वह सूत्रकार शहाथ-'जहा-यथा' २वी रीत 'गंडं-ठम्' नानी ने मथा 'पिलागं वा-पिटकं वा' मारी टीन 'मुहत्तग-मुहुर्तकम्' क्षमात्रमा परिपिलेजा-परिपीरयेत' ४ावी हे 'एवं विन्नवणित्थीसु-एवं विज्ञापनीસ્ત્રીપુ' આ પ્રકારે સમાગમની પ્રાર્થના કરવાવાળી સ્ત્રી સાથે સમાગમ કર श. 'तत्थ-तत्र' मा आय भी 'दासो-दोषः' घोष 'कओ सिया-कुतः स्यात्' ક્યાંથી થઈ શકે છે? અર્થાત દેષ લાગતું નથી. ૧૧ સૂત્રાર્થ_એ એવું પ્રતિપાદન કરે છે કે-જેમ ખીલ અથવા ગુમડાને ડીવાર દબાવવાથી તેમાંથી દાણે અને પરુ નીકળી જવાથી શાતિ થાય છે, એ જ પ્રમાણે કામગની પ્રાર્થના કરનારી કામિની સાથે સંભોગ કરવાથી શાન્તિ થઈ જાય છે. તેમાં દોષ જ કેવી રીતે સંભવી શકે છે? ૧૦
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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