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________________ • समयार्थवोधिनी टीका प्र शु. अ. ३ उ. ३ वादिशास्त्रार्थे समभावोपदेशः १३१ मूलम् - चहुं गप्पगपाई कुंजा असमाहिए । विरुझे ना तेणं तं तं समीयरे ॥ १९ ॥ जेने छाया - बहुगुण कल्पानि कुर्यादात्मसमाधिकः । येनाsन्यो न विरुद्वेत तेन तत्तत्समाचरेत् ॥ १९॥ अन्वयार्थः--(अत्तसमाहिए) आत्मसमाधिकः = प्रसन्नमनाः मुनिः (बहुगुणप्प तात्पर्य यह है कि जिनकी आत्मा रागद्वेष से मलीन हो चुकी है और जिनका मानस मिथ्यात्व से मलीन हैं, ऐसे मन्दवादी अन्त में असभ्य वचनों का आश्रय लेते हैं, क्योंकि वे युक्ति के बल से विजयी नहीं हो सकते। जैसे म्लेच्छ लोग युद्ध में पराजित होकर पर्वत की शरण ग्रहण करते हैं ॥१८॥ शब्दार्थ - 'अत्तसमाहिए- आत्मसमाहितः' प्रसन्न चित्त वाला मुनि बहुगुणप्पगप्पाईं - बहुगुणप्रकल्पानि' परतीर्थि जनों के साथ शास्त्रार्थ के समय जिनसे बहुत गुण उत्पन्न होते हैं ऐसे अनुष्ठानों को 'कुज्जाकुर्यात् ' करे 'जेण येन' जिससे 'अन्ने- अन्वे' दूसरा मनुष्य 'णो विरुज्मज्जा - न विरुध्येत ' अपना विरोध न करे 'तेर्ण-तेन' इस कारण से 'तं तं - तत् तत् ' उस उस अनुष्ठान का 'समायरे - समाचरेत्' आचरण करे।। १.९ ॥ अन्वयार्थ - अन्यतीर्थिकों के साथ वाद करते समय प्रसन्न मनપ્રતિપક્ષીને લાકડી આદિ વડે મારવા પણુ દાડે છે. આ કથનનેા ભાવાથ એ છે કે જેમના આત્મા રાગદ્વેષથી અને બિન્ધ્યાત્મથી મલીન થઇ ચુકયે છે; એવા મન્દબુદ્ધિ અન્ય મતવાદીએ જ્યારે તક આદિ દ્વારા પેાતાની માન્યતાને સિદ્ધ કરી શકતા નથી, ત્યારે અસભ્ય વચનેા તથા મારામારીને આશ્રય લે છે, એજ પ્રમાણે તે મન્દમતિ અન્યમતવાદીએ અસભ્ય વચનાને આશ્રય લે છે!ગાથા ૧૮૫ 'शहाथ' – 'अत्तसमाहिए - आत्मसमाहितः प्रसन्न शित्तवाणा भुनि 'बहुगुणपगप्पा - बहुगुणप्रकल्पानि' परतीर्थ भालुसोनी साथै शास्त्रार्थना समये नाथी षडु गुगु उत्पन्न थाय छे, सेवा अनुष्ठानाने 'कुल्मा-कुर्यात् ४२ जेण येन' नाथी 'अन्ने - अन्ये' जीन भाग से। 'णो विरुज्झेना-न विरुध्येत ' पोताना विरोध ना अरे 'वेण - वेन' या अरथी ततं तत् तत् ' ते ते अनुष्ठा - } ' समाचरे - समाचरेत्' आयर रे ॥१७॥ सूत्रार्थ —अन्यतीर्थि। साथै वाह (विवाह) उश्ती, वसते भुनियो
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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