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________________ १७-२६ सूत्रकृताङ्गसूत्र भा. दूसरे की विषयानुक्रममणिका अनुक्रमाङ्क विषय पृष्ठ तीसरा अध्ययन का पहला उद्देशा १ साधुको परीपह और उपसर्ग को सहन करनेका उपदेश २ संयम का रूक्षत्व का निरूपण ९-१२ ३ भिक्षापरीपह का निरूपण १३-१६ ४ वधपरीपह का निरूपण ५ दंशमशकादि परीपहों का निरूपण २७-२८ ६ केशलंचन के असहत्व का निरूपण २९-३१ ७ परतीर्थिकों का पीडित करनेका निरूपण ३१-३७ ८ अध्ययन का उपसंहार ३७-३९ तीसरे अध्ययन का दूसरा उद्देशा ९ अनुकूल उपसर्गों का निरूपण ४०-८७ तीसरे अध्ययन का तीसरा उद्देशा १० उपसर्गजन्य तपासंयम विराधना का निरूपण ८८-१०६ ११ अन्यतीथिकों के द्वारा कहे जानेवाले ____ आक्षेपवचनों का निरूपण १०७-१११ १२ अन्यतीथिको के द्वारा किये गये आक्षेप वचनों का उत्तर १११-१२५ १३ बाद में पराजित हुए अन्यतीर्थिकों की धृष्टता का प्रतिपादन १२५-१३० १४ वादिके साथ शास्त्रार्थ में समभाव रखने का उपदेश १३१-१३७ तीसरे अध्ययन का चतुर्थ उद्देशा १५ मार्ग से स्खलित हुए साधु को उपदेश
SR No.009304
Book TitleSutrakrutanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages730
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size46 MB
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