SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पृष्ठाङ्क विषय ॥ अथ तृतीयोदेशः ॥ . . . . १ द्वितीय उद्देशके साथ तृतीय उद्देशका सम्बन्धप्रतिपादन, प्रथम सूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र । २ धर्मसे बहिर्भूत लोगोंकी उपेक्षा करो, ऐसे लोगोंकी उपेक्षा करनेवाला मनुष्य ही विद्वान् है। ६३९-६४० ३ द्वितीय सूत्रका अवतरण और द्वितीय सूत्र । ६४१ ४ विद्वान् मनुष्य मनोवाक्कायके सावधव्यापाररूप दण्ड के त्यागी होते हैं, अष्टविध कर्मों के त्यागी होते हैं, उनके शरीर शोभा संस्कार आदिसे रहित होते हैं, अतएव वे सरल होते हैं एवं आरम्भजनित दुःखोंके अभिज्ञ होते हैं । विद्वानके इस स्वरूपको सम्यक्त्वदर्शी-केवलीने कहा है। ६४१-६४६ ५ तृतीय सूत्र का अवतरण और तृतीय सूत्र । ६४६-६४७ ६ सम्यक्त्वदर्शी मुनि-सर्वज्ञ, यथावस्थित अर्थको प्रतिबोधित करनेवाले तथा अष्टविध कौंको दूर करनेमें कुशल होते हुए सभी प्रकारसे कौंको जानकर ज्ञ और प्रत्याख्यानरूप दो प्रकारकी परिज्ञाको कहते हैं। ६४७-६४८ ७ चतुर्थ सूत्रका अवतरण और चतुर्थ सूत्र । ८ इस मनुष्यलोकमें आहेत आगमका श्रवण, मनन और समाराधन करनेवाला, हेयोपादेयके विवेकमें निपुण, रागद्वेषरहित मनुष्य आत्माको स्वजन-धन-शरीरादिसे भिन्न समझकर शरीरमें आस्था न रखे। ६४९-६५४ ९ पञ्चम सूत्र । ६५४ १० तपस्या-आदिके द्वारा शरीरका शोषण करे, शरीरको जीर्ण वना दे। ६५४ ११ छठे सूत्रका अवतरण और छठा सूत्र । १२ जैसे अग्नि जीर्णकाष्ठोंको भस्म कर डालती है उसी प्रकार आत्मा के शुभ परिणाम सम्यग्दर्शनादिमें सावधान और शब्दादि ६४८ ६५५
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy