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विषय
पृष्ठाङ्क उनसे परिचय हो जाता है, नरकादि स्थानों में उत्पन्न हुए वे
जीव नरकादि सम्बन्धी दुःखों का अनुभव करते हैं। ६२४-६२५ ११ छठे सूत्रका अवतरण और छठा सूत्र।
६२५ १२ क्रूरकर्म करनेवाला जीव बहुतकाल तक नरकमें रहता है और
क्रूरकर्म नहीं करनेवाला जीव कभी भी नरकमें नहीं जाता है। ६२६ १३ सातवा भूत्रका अवतरण और सातवा मूत्र ।।
६२७ १४ चतुर्दशपूर्वधारी और केवलज्ञानीके कथनमें थोड़ासा भी अन्तर नहीं होता!
६२७-६२८ १५ अष्टम मूत्रका अवतरण और अष्टम मूत्र ।
६२८ १६ इस मनुष्यलोकमें कितनेक श्रमण ब्राह्मण- सभी प्राणी, सभी
भूत, सभी जीव और सभी सत्त्व हनन करनेयोग्य हैं, हनन करने के लिये आज्ञा देनेयोग्य हैं, हनन करने के लिये ग्रहण करने योग्य हैं और विषशस्त्रादिद्वारा मारने योग्य हैं। इसमें कोई दोष नहीं हैं'
इस प्रकार कहते हैं। यह सब अनायवचन ही है। ६२८-६३१ १७ नवम सूत्रका अवतरण और नवम मूत्र ।
६३२ १८ सभी प्राणी, सभी भूत-आदि हनन करनेके योग्य हैं, इत्यादि
जो कोई श्रमण-ब्राह्मण कहते हैं, उनका यह कथन अनार्यवचन है। इस प्रकार आयौँका कथन है।
६३२-६३३ १९ दशम सूत्रका अवतरण और दशम सूत्र । २० 'सभी प्राणी, सभी भूत आदि हनन करनेयोग्य नहीं हैं-इत्यादि
कथन आर्योंका है'--इस प्रकार स्वसिद्धान्तप्रतिपादन। ६३५-६३६ २१ ग्यारहवें मूत्रका अवतरण और ग्यारहवां सूत्र । २२ दुःख जैसे अपने लिये अप्रिय है उसी प्रकार वह सभी प्राणी,
भूत-आदिके लिये भी अप्रिय है । अतः किसीको दुःख नहीं देना चाहिये । उद्देशसमाप्ति ।
६३६-६३८ ॥ इति द्वितीयोद्देशः।।