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________________ पृष्ठाङ्क ॥ अथ तृतीयोद्देशः ।। विषय १ द्वितीयोदेशके साथ तृतीयोद्देशका सम्बन्धप्रतिपादन, और प्रथम मूत्र । ४३४ २ सन्धिको जान कर लोकके क्षायोपशमिक भावलोक के विषयमें प्रमाद करना उचित नहीं है । अथवा-सन्धि को जान कर लोक को-षड्जीवनिकायरूप लोक को-दुःख देना ठीक नहीं है। ४३५ ३ द्वितीय सूत्रका अवतरण और द्वितीय मूत्र । ४३५ ४ अपने को जैसे सुख प्रिय है और दुःख अभिय, उसी प्रकार सभी प्राणियों को है। इसलिये किसी भी प्राणी की न स्वयं घात करे, न दूसरों से घात करावे, न घात करनेवाले की अनुमोदना ही करे। ४३५-४३६ ५ तृतीय सूत्र का अवतरण और तृतीय सूत्र । ४३७ ६ मुनित्व किसे प्राप्त होता है। ४३७-४४० ७ चतुर्थ मूत्रका अवतरण और चतुर्थ मूत्र । ४४०-४४१ ८ ज्ञानी पुरुष चारित्र में कभी भी प्रमाद न करे, जिनप्रवचनोक्त ___ आहारमात्रा से शरीर-यापन करे । ४४१-४४२ ९ पञ्चम मूत्रका अवतरण और पञ्चम मूत्र । ४४३ १० मुनि उत्तम, मध्यम एवं अधम इन सभी रूपों में वैराग्ययुक्त होवे। ४४४ ११ छठे सूत्रका अवतरण और छठा सूत्र । ४४५ १२ जो मुनि जीवों की गति और आगति को जान कर रागद्वेषसे रहित हो जाता है, वह समस्त जीवलोकमें छेदन, भेदन, दहन और हनन-जन्य दुःखों से रहित हो जाता है। ४४५-४४७ १३ सातवे मूत्रका अवतरण और सातवां मूत्र १४ मिथ्यादृष्टि जीव भूतकाल और भविष्यत्काल सम्बन्धी अवस्थाओं को नहीं जानते है। उन्हें यह नहीं ज्ञात होता कि इसका भूतकाल कैसा था और भविष्यत्काल कैसा होगा ?, कोई २ मिथ्यादृष्टि तो ऐसा कहते हैं कि जैसा इस जीव का अतीतकाल था वैसा ही भविष्यकाल होगा। ४४८ ४४८
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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