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विषय
१२ छठे सूत्रका अवतरण और छठा सूत्र । १३ आत्मकल्याणार्थी मनुष्य आतुर
प्राणियों को देखकर, अप्रमत्त
हो, संयमाराधनमें तत्पर रहे - इस प्रकार संयमाराधनमें तत्पर रहने के लिये शिष्यको आज्ञा देना ।
१९ जो शब्दादि विषयों में होनेवाला सावध कर्म के ज्ञाता हैं वे निरवद्य क्रियारूप संयम में होनेवाले दुःखों के सहन की उपयोगिता को भी जाननेवाले हैं, और जो निरवद्यक्रियारूप संयममें दुःखों के सहन की उपयोगिता को जाननेवाले हैं वे शब्दादिविषयों में होनेवाले सावद्य कर्म के भी ज्ञाता हैं । २० दशम सूत्रका अवतरण और दशम सूत्र ।
२१ कर्मरहित मुनिको नारकादि व्यवहार नहीं होता है; क्यों कि उपाधिका जनक कर्म है ।
२२ ग्यारहवें सृत्रका अवतरण और ग्यारहवां सूत्र ।
पृष्ठाङ्क
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१४ सप्तम सूत्र ।
१५ ' यह संसारपरिभ्रमणरूप दुःख सावधक्रियाके अनुष्ठान से होता है, ऐसा जानकर आत्मकल्याणके लिये अभ्युद्यत रहो ' इस प्रकार शिष्यके प्रति कथन । मायी और प्रमादी वारंवार नरकादियातना को प्राप्त करता है । जो पुरुष शब्दादिविषयों में रागद्वेषरहित होता है, माया एवं प्रमाद से दूर रहता है, वारंवार मरणजनित दुःखके आने की आशंका से भयभीत रहता है; वह श्रुतचारित्र धर्ममें जागरूक हो मरण से छूट जाता है। ३९४-३९५ १६ अष्टम सूत्र ।
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१७ संसारी जीवोंके दुःखों के जाननेवाले, कामभोगजनित प्रमादौ से रहित, पाप कर्मों से निवृत्त वीर पुरुष आत्माके उद्धार करनेमें समर्थ होते हैं ।
१८ नवम सूत्रका अवतरण और नवम सूत्र ।
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२३ कर्मको संसारका कारण जानकर कर्मके कारण प्राणातिपातादि का त्याग करे |
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