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________________ २७२ भाचारागसूत्रे दाहारं परिज्ञाय-ज्ञ-परिज्ञया ज्ञात्वा निरामगन्धः, आमगन्धादशुद्धाहारान्निर्गतो यः स निरामगन्धः-उद्गमोल्पादनेषणागतद्विचत्वारिंशतोषदूषिताहाराग्राहकः सन् 'परिव्रजेत्'-परि-समन्ताद् व्रजेत्-विहरेत् रत्नत्रयसमाराधनतत्परो भवेदिति भावः । तीर्थङ्करनिर्दिष्टे समुचितावसरे प्रतिलेखन-प्रतिक्रमणादिक्रियां कुर्वन्ननगार आयदेशोत्तमकुलादिकं मोक्षकारणं प्राप्य संसारपारावारमुत्तीर्य च सन्धिस्थानीय तत्तीरे वर्तमानो निखिलकर्मक्षयं कृत्वा ततो निष्क्रमितुकामोऽस्मीत्येवं परिज्ञावान् 'अधःकर्मादिदोपदूषिताहारो विषभक्षणमिवात्मगुणघातकः' इति सम्यगालोच्य तादृशमाहारं त्रिकरणत्रियोगैः परित्यज्य परिशुद्धमाहारादिकं भिक्षमाणो विहरेदिति समुदितार्थः ॥ मू० २॥ दसरों को करावे, तथा करने वाले किसी अन्य की अनुमोदना भी न करे। “सर्वामगन्धं परिज्ञाय निरामगन्धः परिव्रजेत्” इसका अर्थ है अशुद्धआहार, अर्थात् ज-परिज्ञाद्वारा इस प्रकार के आहार को अशुद्ध जानकर 'निरामगन्धः'-अशुद्ध आहार से भिन्न शुद्ध आहार को कि जो उगम (१६) उत्पादन (१६) एषणा (१०) संबंधी बयालीस (४२) दोषों से रहित होता है ग्रहण करे । यदि इस प्रकार के आहार का लाभ संयमी को नहीं होता है तो वह इस दृषित आहार को छोड़कर अपने रत्नत्रय की आराधना में तत्पर रहे । तीर्थकर प्रभुने प्रतिलेखनादि क्रियाओं का जो समय निश्चित कर दिया है उस समय में उन२ क्रियाओं को करने वाला, तथा आर्य क्षेत्र का लाभ, उत्तम कुल में जन्म, रत्नत्रय की प्राप्ति आदि मोक्ष के कारणभूत संधिस्थानों को जिसने पाया है ऐसा अनगार १२वावा भी उनी मनुभोजन। ५ न रे " सर्वामगन्ध परिज्ञाय निरा मगन्धः परिव्रजेत् " याने पर्थ छे मशुद्ध माडा२ अर्थात् - पवास ॥ २ना मारने मशुद्ध तीन निरामगन्ध. अशुद्ध माथी लिन्न શુદ્ધ આહારને કે જે ઉદ્દગમ (૧૬) ઉત્પાદન (૧૬) એષણ (૧૦) સબ ધીર બેતાલીસ દેથી રહિત હોય છે તેને ગ્રહણ કરે છે કદાચ આ પ્રકારના આહા ને લાભ સંયમીને ન થાય તો તે આવા દુષિત આહારને છોડીને પોતાના રત્નત્રયની આરાધનામાં તત્પર રહે. તીર્થકર પ્રભુએ પ્રતિલેખનાદિ ક્રિયાઓને જે સમય નિશ્ચિત કરી આપે છે તે સમયમાં તે તે ક્રિયાઓને કરવાવાળા, તથા આર્યક્ષેત્રને લાભ, ઉત્તમ કુળમાં જન્મ રત્નત્રયની પ્રાપ્તિ આદિ મોક્ષના કારણભૂત સધિસ્થાનોને જેણે
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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