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________________ आचाराङ्गसूत्रे परम्परसूत्रसम्बन्धस्तु -' से आयवले ' इत्यादिना, स्वसमानार्थमात्मवलादिदण्डसमारम्भौ न त्वया कर्तव्य इति । १६४ उच्चगोत्रोत्पत्त्या मानं, नीचगोत्रोत्पत्त्या चापमानं ज्ञात्वा हर्ष-क्रोधौ त्वया न विधेयौ, यतस्तौ मानापमानौ बहुषु जन्मसु प्राप्तपूर्वाविति दर्शयति- “ से असई " इत्यादि । 44 मूलम् -से असई उच्चागोए, असई नीआगोए, नो हीणे, नो अइरित्ते, नोऽपीहए, इयपरिसंखाय को गोयावाई, को माणावाई, कंसि वा एगे गिज्झे, तम्हा पंडिए नो हरिसे नो कुज्झे ॥ सू० १ ॥ छाया - सोऽसकृदुच्चैर्गोत्रे ऽसकृन्नीचैर्गोत्रे न होनो नातिरिक्तः, नो ईहेतापि, इति परिसंख्याय को गोत्रवादी को मानवादी, कस्मिन् वैकस्मिन् गृध्येत्, तस्मात्पण्डितो न हृष्येत् न क्रुध्येत् ॥ ० १ ॥ उत्पत्ति के अभिमानादिकों में जिस तरह से न फॅसे इस प्रकार से अपनी प्रवृत्ति कर | 'से आयबले ' इत्यादि परम्परासूत्र के साथ भी संबंध है, जिससे शिष्य को संबोधन करते हुए आचार्य इस बात का उपदेश देते हैं कि अपने मान के लिये आत्मबल आदि द्वारा तुझे दण्डसमारंभ नहीं करना चाहिये । नीचे के सूत्र का अवतरण करने के लिये सूत्रकार शिष्य से कहते हैं कि - हे शिष्य ! उच्चगोत्र में उत्पत्ति से मान और नीच गोत्र में जन्म लेने से अपमान का विचार कर हर्ष और क्रोध करना तुझे योग्य नहीं , क्योंकि कर्म के प्रभाव से तूने पूर्व के अनेक भवों में इन्हें प्राप्त किया । यही बात प्रकट की जाती है-" से असहं " इत्यादि । અભિમાનાદિમાં જેવી રીતે ન સે તૈવી પ્રવૃત્તિ પેાતાની કર C त्या पर पशसूत्र साथै पशु संबंध छे मेथी शिष्यने સખાધન કરતા આચાર્ય એ વાતનો ઉપદેશ આપે છે કે પેાતાના માન માટે આત્મખલ આદિ દ્વારા તારે ઈંડસમારભ ન કરવા જોઈએ નીચેના સૂત્રનુ અવતરણ કરવા માટે સૂત્રકાર શિષ્યને કહે છે કે-હે શિષ્ય ! ઉચ્ચ ગેત્રમા ઉત્પત્તિથી માન, અને નીચ ગોત્રમા જન્મ લેવાથી અપ માનનો વિચાર કરી હર્ષ અને ક્રોધ કરવા તને ચેગ્ય નથી. કારણ કે કર્મના પ્રભાવથી તે પૂર્વના અનેક ભવામાં તે પ્રાપ્ત કર્યાં છે એ વાત પ્રગટ वामां आवे छे-' से असई ' इत्यादि. "
SR No.009302
Book TitleAcharanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages780
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size52 MB
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