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आवारागसूत्रे सावधव्यापारं करोतीति तात्पर्यम्। एतान्यात्मवलादीनि चैहिकदण्डग्रहणकारणानि। न केवलं तदर्थमेवानथं करोति किन्तु पारलौकिकार्थमपि परमार्थानभिज्ञो दण्डग्रहणं करोतीत्याह- पापमोक्ष' इति, पापमोक्षः-पातयति नरकनिगोदादाविति पापं, तस्मान्मोक्षो मे भविष्यतीति मन्यमानः चेतसि चिन्तयन् , ____ अत्र 'इति'-शब्दो हेतौ, यस्मान्मे पापमोक्षो भवितेति मन्यमानः, इति सम्बन्धः। असौ नानाविधहवनीयद्रव्यैर्जुहोति । तथा पितृतर्पणार्थं दर्भ-तिल-जलादिना समारम्भं करोति च । एवंविधसावग्रव्यापारैर्नानाविधदुर्गतिदायकमनेकजन्मदुर्मोचमधिकमधमेवार्ज़यति। अलाभ के भय से प्राणियों की हिंसादिक क्रियाओं को-अनेक अनर्थकारी सावध व्यापारों को वह करता है। ये आत्मबलादिक जो इस जीव को इस लोक में दण्ड ग्रहण के कारण हैं, केवल उनके निमित्त ही अनर्थों को यह नहीं करता है, किन्तु पारलौकिक कार्यों के लिये भी परमार्थ से अनभिज्ञ बना हुआ यह दण्ड का पात्र बनता है । इसी अभिप्राय को 'पापमोक्षः' इस पद से सूत्रकार प्रकट करते हैं-नरक निगोदादि गतियों को जीव जिसके द्वारा प्राप्त करते हैं उसका नाम पाप है। 'पाप से मेरी मुक्ति हो जायगी, अर्थात् मैं पापरहित हो जाऊँगा' इस धारणा से ओतप्रोत होकर वह नानाविध हवनीय द्रव्य से हवन करता है, अनेक अनर्थविधायक सावद्य कार्यों के करने से दण्ड-प्राणानिपातादि-का अधिकारी होता है, इन कार्यों से पापमुक्त न होकर उल्टे नरकनिगोदादि गतियों में उस जीव का पतन होता है। सूत्र में 'इति' यह शब्द हेतु-अर्थ का बोधक है, जिसका भाव यह है-वह यह समગ્રહણનું કારણ છે, કેવળ તેના નિમિત્ત જ અનર્થોને તે નથી કરતે પણ પારલૌકિક કાર્યો માટે પણ પરમાર્થથી અનભિજ્ઞ બનીને આ દંડનું પાત્ર બને છે. मा अलिप्रायने 'पापमोक्षः' मा ५४थी सूत्रा२ प्रगट ४२ छ-न२४ निगाह ગતિઓને જીવ જેના દ્વારા પ્રાપ્ત કરે છે તેનું નામ પાપ છે. “પાપથી મારી મુક્તિ થઈ જશે, અર્થાત હું પાપરહિત થઈ જઈશ” એ ધારણાથી ઓતપ્રેત થઈને તે નાનાવિધ હવનીય દ્રવ્યથી હવન કરે છે અનેક અનર્થવિધાયક સાવદ્ય કાર્યોને કરવાથી દડ-પ્રાણાતિપાતાદિ–નો અધિકારી થાય છે આવા કાર્યોથી પાપમુક્ત બનતે नयी ५५ न२४ निगाहादि गतियोमा ते वनु पतन थाय छे. सूत्रमा ' इति'
શબ્દ હેતુ અર્થને બોધક છે, જેનો ભાવ એ છે કે તે એમ સમજે છે કે