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अध्य० २. उ. २
१४३ तदित्थं द्रव्यलिङ्गिनो नटा इव ते हिंसामृषाऽदत्तादानादिना लोकान् वञ्चयन्ति। ते पुनस्तल्लाभाय प्रवृत्ता भवन्तीत्याह-'अनाज्ञये'-ति। ___ अनाज्ञया भगवदाज्ञाबहिर्भूतया स्वच्छन्दमत्या मुनयः मुनिवेषधारिणः, शब्दादिकामोपाये प्रत्युपेक्षन्ते प्रवर्तन्ते कामभोगविनिविष्टचित्ता भवन्तीत्यर्थः । अत्र अस्मिन् कामभोगासक्तिरूपे मोहे, द्रव्यमोहे-मद्यादौ, भावमोहे संसारेऽज्ञाने बिलकुल ही रंजित नहीं होती है। भले ही इनकी प्रवृत्ति से बाह्य जन रंजित नहीं होती है, भले ही इनकी प्रवृत्ति से बाहाजन रंजित हो जावें, परन्तु इनका आत्मा स्वतः तदनुकूल-प्रवृत्ति से शुन्य होने से बिलकुल भी रंजित नहीं हो पाता है; हिंसा, झूठ, चोरी आदि आत्रवों में ही इनका अन्तरङ्ग लालसायुक्त बना रहता है। इसीले ये लोकों को ठगते रहते हैं । ऐसी प्रवृत्ति इनकी क्यों होती है? इस का कारण बताते हुए सूत्रकार कहते हैं कि-'अनाज्ञया मुनयः प्रत्युपेक्षन्ते' महात्रतों को धारण करने का ढोंग ये लोग इसी लिये करते हैं कि ये भगवदाज्ञा से बहिर्भूत हैं । भगवान की आज्ञा-ग्रहण किये हुए महावतों को अन्तरङ्ग की सची लगन के साथ पालने की है। पांच आत्रवों का नवकोटि से त्याग किये विना उनका शुद्ध पालन नहीं हो सकता है। जो इस प्रकार की आज्ञा से बहिर्भूत हैं और “जो हम कहते हैं वह सत्य एवं शुद्ध है" इस प्रकार की स्वच्छन्द्र प्रवृत्तिशाली हैं वे मुनि वेषधारी साधु शब्दादिक पांच इन्द्रियों के विषयों में प्रवृत्त रहते हैं। “ अत्र मोहे पुनः पुनः संज्ञा नो हव्याय नो पाराय" मोह दो प्रकार का है-एक द्रव्यमोह પણ રંજિત થતો નથી. હિસા, જઠ, ચેરી, આદિ આશ્રમાં જ તેની અંતરંગ લાલસા બની રહે છે જેથી તે લેકેને ઠગતા રહે છે. એવી પ્રવૃત્તિ તેની કેમ થાય છે તેનું કારણ બતાવતાં સૂત્રકાર કહે છે કે –
__'अनाशया मुनयः प्रत्युपेक्षन्ते ' मानताने धा२६४ ४२वाना in ते ४ એ માટે કરે છે કે–તેઓ ભગવદુઆજ્ઞાથી બહિર્ભત છે. ભગવાનની આજ્ઞા બહણ કરેલા મહાવતેને અંતરંગની સાચી લાગણીથી પાળવાની છે. પાંચ આશ્રવિના નવ કેટિથી ત્યાગ કર્યા વિના તેનું પાલન થતું નથી. જે આ પ્રકારની આજ્ઞાથી બહિર્ભત છે અને “જે અમે કહીએ છીએ તે સત્ય અને શુદ્ધ છે” આ પ્રકારની સ્વછંદ પ્રવૃત્તિશાલી છે તે સુનિવેષધારી સાધુ શબ્દાદિક પાંચ घान्द्रयान विषयोमा प्रवृत्त रहेछ. 'अत्र मोहे पुन पुन. सन्ना नो हव्याय नो पाराय' મેહ બે પ્રકારનો છે–એક દ્રવ્યમેહ અને બીજો ભાવમોહ, મદ્યાદિક દ્રવ્યહ