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आचारचिन्तामणि टीका अध्य. १ उ. ७ नं. ६ मुखवस्त्रिकाविचारः
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प्रमाणदवरकेण सर्द्ध मुखे बध्नीयात् मुखपच्या भदन्त ! कोऽर्थः ?, गौतम ! यत्खलु मुखान्ते सदा वर्त्तते तेनार्थेन मुखपत्री । कस्मै अर्थाय भदन्त ! मुखपत्रीं मुखेन सार्द्धं वघ्नीयात् ?, गौतम ! स्वलिङ्गवायुजीवरक्षणार्थम् ॥ ३ ॥
यदि खलु भदन्त ! मुखपत्री वायुजीवरक्षणार्थाय तत्किं सूक्ष्मवायुकायजीवरक्षणाय वा वादरायुकायजीवरक्षणार्थाय ? गौतम ! नो इति सूक्ष्मवायुकायजीवरक्षणार्याय, ( किन्तु ) वादरवायुकाय जीवरक्षणार्थीय, नो इति अविशेषम् एवं सर्वेऽपि अन्तः ब्रुवन्ति ॥ ४ ॥ इति ।
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संपति केचिन्मुनिम्मन्या मुखवखिकावन्धनं प्रतिपेधयन्ति तेषामाचार्यास्तु
प्रश्न- भगवान् ! मुँहपत्ती का अर्थ क्या है ?
उत्तर-वह सदैव मुँह पर बंधी रहती है इस लिए वह मुँहपत्ती कहलाती है ।
प्रश्न- किस प्रयोजन से मुँहपत्ती मुख पर बांधनी चाहिए !
उत्तर- मुँहपती बाँधना साघु का स्वलिंग है इस लिए तथा वायुकाय के जोनों को रक्षा के लिए मुँहपती बाँधी जाती है ॥३॥
प्रश्न- भगवान् अगर वायुकाय की रक्षा के लिए मुँहपती है तो सूक्ष्म वायुकाय को रक्षा के लिए है या चादर वायुकाय की रक्षा के लिए 1 उत्तर- सूक्ष्म वायुकाय की रक्षा के लिए
नहीं किन्तु बादर वायुकाय के जीवों को
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रक्षा के लिए है। सभी अर्हन्त ऐसा ही कहते हैं
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आजकल अपने को मुनि मानने वाले कोई कोई मुखfant के बाँधने का
પ્રશ્ન-ભગવન્! સુહુપત્તીના અથ શું છે?
ઉત્તર-ગૌતમ! તે હમેશાં મુખપર બાંધી રહે છે. તેથી તે સુહુપત્તી કહેવાય છે. પ્રશ્નનું પ્રચાજનથી સુંહપત્તી મુખપર માંધવી જોઈએ? ઉત્તર-મુહુપત્તી બાંધવી તે સાધુનું લિંગ છે એ માટે, તથા વાયુકાયના જીવાની રક્ષા માટે મુહપત્તી ખાંધે. (૩)
प्रश्न--(भगवन्! अगर बायुभयनी रक्षा भाटे, भुंडपत्ती छे, तो शुं सूक्ष्म વાયુકાયની રક્ષા માટે છે. અથવા માદર વાયુકાયની રક્ષા માટે છે? ઉત્તર—સૂક્ષ્મ વાયુકાયની રક્ષા માટે નહિ પરન્તુ ખાદર વાયુકાયના જીવોની रक्षा भाटे छे. सर्व अर्हन्त से प्रभावेन हे छे. (४) આજ કાલ પેાતાને મુનિ માનવાવાળા કઈ-કઈ મુખવસ્ત્રિકા માંધવાના નિષેધ