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________________ - - - - પ૭૮ ' भाषागाने "दो पुरिसा सरिसवया अन्नमन्नेहिं सदि अगणिकाय समारंभति, तत्य णं एगे पुरिसे अगणिकायं समुज्नालेति, एगे विमवेति, तत्य णं के पुरिस महाकम्मयराए ? के पुरिसे अप्पकम्मपराए ? गोयमा! जे उजालेति से महाकम्मयराए, जे विज्झवेति से अप्पकम्मयराए "॥ छाया-द्वौ पुरुषी मशवयस्को अन्यान्याभ्यां सार्द्धम् अमिकायं समारमेते, तत्र खलु एकः पुरुपः अग्निकार्य समुज्ज्यालयति, एको विध्यापयति, तत्र खलु कः पुरुपः महाक्रमतरकः ? कः पुरुषः अल्पकर्मतरकः ? । गोतम! या (अमि) उज्ज्वालयवि स महाकर्मतरका, य (अग्नि) विध्यापयति स अल्पकर्मतरकः (भगवती मूत्र०) ॥ सू०९।। तदेवमग्निकायहिंसया बहुतरजीवोपमर्दनं भवतीति विदित्वा त्रिकरणत्रियोगैः कृतकारितानुमोदितैश्वामिशनसमारम्भो वर्जनीय इत्याह-' एत्य सत्य' इत्यादि। "समान उम्र वाले दो पुरुष परस्पर अग्निकाय का आरंभ करते हैं । एक पुरुप अग्निकाय को जलाता है और एक बुझाता है। इन में से कौन-सा पुरुष महाकर्म बांधता है ? और फोन अल्पकर्म बांधता है । हे गौतम ! जो अग्नि जलाता है वह महा कर्म बापता है और जो अग्नि बुझाता है वह अल्प कर्म बाधता है" (भगवतीसूत्र.) ॥ सू० ९॥ इस प्रकार अग्निकाय की हिंसा होती है, यह जानकर तीन करण, तीन योग से, तथा कृत, कारित और अनुमोदना से अग्निशस्त्र का समारंभ त्याग देना चाहिए, यही बात कहते हैं-'एत्थ सत्य.' इत्यादि । સમાન ઉમરવાળા બે પુરૂષ પરસ્પર અનિકાયનો આરંભ કરે છે. એક પુરૂષ અનિકાયને સળગાવે છે. બાળે છે અને એક બુઝાવેલ છે. તે બેમાંથી કે પુરૂષ મહા કર્મ બાંધે છે. અને કેણ અ૫ કર્મ બાંધે છે ? હે ગૌતમ! જે અગ્નિ સળગાવે છે-બાળે છે તે મહા કર્મ બાંધે છે. અને જે અગ્નિ બુઝાવે છે. તે म५ ४ मांधे छे." (सती सूत्र.) (सु. ८) આ પ્રમાણે અનિકાયની હિંસાથી ઘણા પ્રકારના જીવોની હિંસા થાય છે. એ જાણ કરીને ત્રણ કરવું, ત્રણ ચાગથી તથા કરવું, કરાવવું અને અનુમેહનાથી अतिशयन सभास त्य न , मेरा पात ४९ एस्थ सत्थं,' या.
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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