SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६ ३ त्रिदोषनाशकत्वम् चात-वित्त-कफ नाश कत्वम्, ४ सप्तधातुपौष्टिक - रसासृह- मांसमेदोऽस्थिम ज्जाशुक्र-वर्द्धकत्वम्, त्वम् } (३) त्रिदोषनाशकत्व, वात पित्त और कफ इन तीन दोषों को दूर करने वाला | आचाराग्रसत्रे स्वस्वभाषापरिणतत्वेन तृप्ति जनकत्वम् । मिध्यात्वमिश्रसम्यक्त्वमोहनीय दोपनाशकत्वम् । द्रव्यार्थिक- पर्यायार्थिक-नयाभ्यां स्यादस्त्यादिसप्तभङ्गानां पुष्टिकरत्वम् । चतुष्पद आदि की अपनी २ भाषा में परिणत होजानेके कारण तृप्तिकारक । (४) सप्तधातुपोष्टि- रस, रक्त, मांस, मेद, हड्डी और वीर्य, इन सात धातुओं को बढाने वाला | कल्व, (४) सातधातुने युष्ट, કરવાપણુ (3) त्रिदोषनाशक्त्य, वात, पित्त भने ४५, यात्रा દાયાને દુર કરવા વાળા मिष्यात्य, मिश्र और सम्यक्त्व मोहनीय इन तीन कर्मों को नष्ट - करने वाला । रस, रक्त भांस, भेट, हाउभं મજા અને વીય, આ સાત ધાતુને બલવાન કરનાર. कथंचित् द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा अनित्यता आदि सात भंगो का पोषक । જીવાને પાત પેાતાની ભાષામાં પરિણત હાવાના કારણે तृप्तिमर४. मिथ्यात्व, मिश्र ने सभ्यકત્વ માહનીય, આ ત્રણકમાના નાશ કરનાર द्रव्यार्थि भने पर्यायाथि :નયની અપેક્ષાએ કથચિત્ નિત્યતા કચિત અનિત્યતા આદિ સાત ભગાના પેાષક
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy