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आचाराङ्गसंत्रे
रूपं लोकं सर्वमेव विहिंसन्ति ते द्रव्यलिङ्गिनो नानगारा इति भावः, उक्त'सावज्जा किरिया जेर्सि, सावज्जा देखणा तदा ।
"
भमंति दीहसंसारे, ते सन्वे दन्त्रलिंगिणो || १ इति ॥ सु. २ ॥
एवं शाक्यादीनां पृथिवीकायोपमर्दकत्वेन द्रव्यलिङ्गित्यं प्रतिबोधितं भगवति जम्बूस्वामिनं सुधर्मा स्वामी कथयति - ' तत्थे ' - त्यादि ।
11 मूलम् 11
तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइआ, इमस्स चैव जीवियस्स परिनंदणमाणण-पूरणाए जाइमरणमोयणाए, दुक्खपडिघायहेजं, से सयमेव पुढविसत्थं समारंभइ, अण्णेहि वा पुढविसत्यं समारंभावेश, अण्णे वा पुढविसत्यं
लिंगी हैं- सच्चे अनगार नहीं हैं । कहा भी है
" जिन की क्रिया सावध है और जिनका उपदेश सावध है, वे दीर्घ संसारमें परिभ्रमण करते हैं । उन सबको द्रव्यलिंगी जानना चाहिए " ॥ सू. २ ॥
इस प्रकार पृथिवीकाय का उपमर्दन करने वाले होने से शाक्य आदि को भगवान् ने द्रव्यलिंगी कहा है । यह बात सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी से कहते हैं-' तत्थ स्वल' इत्यादि ।
मूलार्थ - भगवान् ने परिज्ञा का उपदेश दिया है । इसी जीवन के लिएबन्दना, मान और पूजन के लिए, जन्म और मरण से मुक्त होने के लिए, दुःख का नाश करने के लिए वह स्वयं ही पृथिवीकाय का आरंभ करता है, दूसरों से पृथिवीकायका भारम्भ कराता है, और पृथिवीकायका आरंभ करने वाले दूसरों का अनुमोदन करता है ।
અણુગાર–સાધુ નથી. કહ્યું છે કેઃ—
“ જેની ક્રિયા સાવધ છે, અને જેના ઉપદેશ સાવધ છે, તે દી સસારમાં परिभ्रभाय १रे छे, ते सर्वने द्रव्यविंगी लघुवा लेहये." (सू० २)
એ પ્રમાણે પૃથ્વીકાયનું ઉપમદન—નાશ કરવાવાળા હૈાવાથી શાક્ય માદિને ભગવાને द्रव्यसिंगी उद्या छे. या वात सुधर्मा स्वाभी भ्यू स्वाभीने उडे छे- 'तत्थ' इत्यादि. भूसार्थ - लगवाने परिशाना उपदेश आये। छे, आा भुवनने भाटे, वडना, માન અને પૂજન માટે, જન્મ અને મરણથી મુક્ત હેાવાના માટે, દુઃખના નાશ કરવા માટે તે પાતે જ પૃથ્વીકાયના આર’ભ કરે છે, ખીજાથી પૃથિવીકાયના આરંભ કરાવે છે, અને પૃથ્વીકાયના આરંભ કરનાર બીજાને અનુમેદન આપે છે. તે આરંભ તેના