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-आचारचिन्तामणि-टीका अध्य.१ उ.१ ५.२. मतिज्ञानम् (९) १९१
____ सा संज्ञा किंस्वरूपा, या न भवत्येकेपाम् ? इत्याकाक्षायामाह-" तंजहा" "इति । सा यथा
"पुरत्यिमाओ · वा दिसासो" इत्यारभ्य-"अहोदिसाओ वा आगओ अहमसिं" इत्यन्तेनेदमुक्तं भवति-वर्तमानजन्मनः प्राक् कम्यां दिशि ममावस्थान“ मासीदिति स्वगत्यागत्यवधिविशिष्टपूर्वादिपड्दिशाज्ञानं नास्ति संज्ञिनामपि कियतांचित् । यथा-मदिरामदघूर्णितनयनो मूर्छितः पथि पतितः स्वजनादिना समुत्थाप्य गृहमानीयते । अथ मृर्जापगमेऽप्यसौ न जानाति-काहं पतितः ?, कथमुत्यापितः ?, केन कया रीत्याऽत्र समानीतोऽस्मी ?-ति । तद्वद् विशिष्टसंज्ञाया
वह संज्ञा किस प्रकारकी है जो किन्हीं २ जीवों को नहीं होती है। इस प्रकार. की जिज्ञासा होने पर कहा गया है-तंजडा-अर्थात् वह इस प्रकार
'पुरथिमाओवा वा दिशाओ' से लेकर 'अहोदिशाओवा आगो : अहमंसि ' तक का आशय यह है कि इस वर्तमान जन्म से पहले मैं कहाँ रहता : था !, .. इस प्रकारका अपनी गति-आगति से युक्त छह दिशाओं का ज्ञान कितनेक संज्ञी जीवोंको
भी नहीं होता । जैसे-मदिरा . के मद से छका हुआ, मूर्छित . और रास्ते में पडा __ हुआ पुरुप स्वजन आदि के द्वारा उठाकर घर लाया जाता, है, किन्तु मूर्छा हट जाने · पर भी उसे ज्ञान नहीं होता कि मैं कहाँ गिरा था ?, किस प्रकार उठाया गया ?, कौन -किस प्रकार मुझे यहाँ लाया ?, इसी प्रकार विशिष्ट संज्ञा के अभाव के कारण जीव
. ते सज्ञा पा प्रारनी छ, 5-.७वान नयी जाती ?, मा प्रभारी
- वाथी ,घुछ -'तंजहा' अर्थात ते मा. अरे
"पुरत्यिमाओवा दिसाओ" थी धन " अहोदिसाओ वा आगओ अहमंसि," - સુધીને આશય એ છે કે –આ વર્તમાન જન્મથી પહેલાં હું ક્યાં રહેતે હતે. આ પ્રકારનું પિતાની ગતિ–આગતિથી યુક્ત છ દિશાઓનું જ્ઞાન કેટલાક સંજ્ઞા જીને પણ નથી થતુ. જેમ મદિરાના કેફથી છકેલા મૂઈિત-બેભાન રસ્તામાં પડેલા પુરૂષને સ્વજનદ્વારા ઉઠાવીને પિતાના ઘેર લાવવામાં આવે છે; પરંતુ મૂછ ઉતરી ગયા પછી પણ તેને જ્ઞાન થતું નથી કે-હું ક્યાં પડી ગયું હતું ? કેવી રીતે મને Goय? .पी.शत..मन मडि.साव्या ?, L. Rनी -पशिष्ट सशाना