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________________ आधाराने (द्रतविलम्वितं छन्दः) "निपुणशिष्यगणैर्विनयान्विते, विमलमाययुः परिसेवितः। गणधररखिलैः प्रथमं वचः, खलु 'गुयं म' इति प्रतिमापितम्" ॥१॥ इति । भगवता यदाज्यानं तदाह-~~-'इहमेगेसि' इत्यादि । इहमेगेसि णो सम्णा भबइ, तंजहा-पुरथिमाओ वा दिसाओ आगो अहमंसि, दाहिणाओ वा दिशाभो आगो अहमंसि, पचत्यिमाओ वा दिसाओं आगओ अहमंसि, उनराओ या दिसामओ आगो अहमसि, उड्डाओ वा दिसाओं आगओ अहमंसि, अहोदिसाओ या आगो अहमसि । अण्णयरीओ वा दिसा अणुदिसाओ का आगओ अहमसि ॥ ग. २ ॥ ___"विनय से युक्त निपुण शिष्यों द्वारा सेवित, तथा निर्मल भावों वाले सब गणघरों द्वारा अपने२ शिष्यों के प्रति सर्व प्रथम मुयं में यह वाक्य कहा गया है ॥१॥ भगवानन्ने जो कहा वह कहते हैं-~~-'इहमेगेसि' इत्यादि । मूलार्थ-- किन्हीं २ (जीवी) को संज्ञा नहीं होती कि मैं पूर्व दिशा से आया है, या मैं दक्षिण दिशा से आया हूँ, या मैं पश्चिम दिशा से आया हूँ, अथवा मैं उत्तर दिशा से आया हूँ। अथवा मैं उर्व दिशा से आया है, या अघोदिशासे मै आया हूँ, अथवा मैं दूसरी किसी दिशा या अनुदिशा (विदिशा) से आया हूँ। ॥२॥ “વિનયથી યુક્ત નિપુણ શિષ્યએ સેવિત તથા નિર્મલ ભાવવાળા, સર્વ ગણધર દ્વારા પિતપિતાના શિષ્ય પ્રતિ સર્વ પ્રથમ “કુ મે એ વાક્ય કહેવામાં भाव्यु छ" ॥१॥ भूसाथ:-'इहमेगेसि त्याहि.5-31 (1) साथी जाती है પૂર્વ દિશામાંથી આવ્યે છે, અથવા હું દક્ષિણ દિશામાંથી આવ્યું છું, અથવા હું પશ્ચિમ દિશામાંથી આવ્યો છું, અથવા હું ઉત્તર દિશામાંથી આવ્યો છું, અથવા હે ઉર્વ દિશામાથી આવ્યો છું, અથવા હું અધ દિશામાંથી આવ્યો છું, અથવા અન્ય-બીજી કઈ દિશામાંથી અથવા અનુદા (વિદિશા)માંથી આવ્યો છું. મારા
SR No.009301
Book TitleAcharanga Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages915
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size25 MB
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