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आचाराङ्गमुत्रे
चात्मनोमालिन्यम्, यथा पकसंगाज्जलस्य मालिन्यं । तथा - नरकगत्यादिनामकर्मणो विपाकाविर्भावान्नरकगत्याद्याख्य औदयिको भावः । कषायमाहनीयकर्मणो विपाकाविर्भावाच क्रोधी, -मानी - ध्यादिरौदयिको भावः । एवं सर्वत्रौदयिको भावः समालोचनीयः ।
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(५) परिणामिक - भावः --
(५) परिणमनं - सर्वथा - अपरित्यक्तपूर्वावस्थस्य रूपान्तरेण भवनं - परिणामः, स एव पारिमाणिकः । अत्र स्वार्थे ठकू मत्ययः, न तु निर्वृत्यर्थे जीवस्यादिमत्त्वापत्तेः । यदि ' परिणामेन निर्वृत्तः ' इत्यर्थे पारिणामिको जीव इति मन्यते, तदा प्रागवस्था
भाव भयिक है | भाव भाग्मा का मालिन्यरूप है, जैसे कि कीचड के संसर्ग से जल में मलिनता आ जाती है | नरकगतिनामकर्म आदि के उदय से नरक गति आदि औदयिक भाव कहलाते हैं । कषायमोहनीय कर्म के उदय से कोध, मान आदि औदयिक भाव होते हैं । इसी प्रकार सभी जगह औदयिक भाव का विचार कर लेना चाहिये । (५) पारिणामिक भाव -
पूर्व अवस्था का सर्वथा त्याग न कर के रूपांतर में होना परिणाम है, और वही पारिणामिक कहलाता है। यहां स्वार्थमें ठक् प्रत्यय हुआ है, न कि निर्वृत्ति अर्थ में, निर्वृत्ति अर्थ में प्रत्यय होनेसे जीवका आदिमान् होनेका प्रसङ्ग भाजाता है । यदि "परिणामेन निर्वृत्तिः पारिणामिक:- जीवः " अर्थात् परिणामसे होनेवाला पारिणामिक-जीव कहलाता है, ऐसी व्युत्पत्ति मानली जाय तो 'किसी पूर्व काल में जीव नहीं था वह अब हुआ है' इस
ફાદવના સંસર્ગથી જલમાં મલિનતા આવી જાય છે. નરકતિ નામકર્મ આદિના ઉદયથી નરકતિ આદિ ઔયિક ભાવ કહેવાય છે. કષાય–મેહનીય કર્મીના ઉદયથી ક્રોધ, માન થ્યાદિ તે ઔયિક ભાવ છે. આ પ્રમાણે તમામ સ્થળે ઔયિક ભાવના વિચાર કરી લેવા.
(4) पारिशुभिः भाव
પૂર્ણ અવસ્થાના સર્વથા ત્યાગ નહિ કરતાં રૂપાંતર થવુ' તે પરિણામ છે, અને પરિણામ તેજ પારિણામિક કહેવાય છે. અહીં સ્વાર્થીમાં ફ્ પ્રત્યય થયા છે પરન્તુ નિવૃત્તિ અર્થમાં નથી થયા. નિવૃત્તિ અર્થમાં પ્રત્યય થવાથી જીવના આદિમાન ( आदिवाणो ) थवानो असंग भावी लय हे ले" परिणामेन निर्वृत्तः परिणामिकः-जीवः " अर्थात् 'परियामथी थवावाजे पारिभिः लव हेवाय छे' भावी व्युत्पत्ति