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आचार चिन्तामणि- टीका अवतरणा पुद्गलास्तिकाय
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जघन्यगुण (एकगुण) स्निग्धस्य अजघन्यगुण ( द्विगुणाद्यनन्तगुणपर्यन्त ) - स्निग्धस्य वा स्वस्वापेक्षयैकाधिकगुणरूक्षेण, पुनः स्वस्वापेक्षया यधिक त्र्यधिक चतुरधिकादिगुणरूक्षेणापि बन्धो भवति । उक्तञ्च भगवता प्रज्ञापनामुत्रे - (१३) - त्रयोदशे परिणामपदे - " बंधणपरिणामे णं भंते ! कड़विहे पण्णत्ते ?, गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, जहा - गिद्धयंधणपरिणामे य लुक्खवंधणपरिणामे य । " समद्धिया बन्धो, न होड़ समलुक्खयाएवि ण होड़ । माणिक्ख-तणेण बंधो उधाणं ॥१॥
छाया -- बन्धन परिणामो भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ?, गौतम 1 द्विविधः प्रज्ञप्तस्तद्यथा - स्निग्धवन्धनपरिणामश्र, रूक्षबन्धनपरिणामश्च । समस्निग्धतायां बन्धो न भवति, समरूक्षतायामपि न भवति । विमात्र स्निग्धरूक्षत्वेन, बन्धस्तु स्कन्धानाम् || १ ||
नहीं होता । जघन्य गुण ( एकगुण ) स्निग्ध का अथवा अजघन्य गुण ( दो से लगाकर अनन्त गुण तक ) स्निग्ध का, अपने से एक गुण अधिक रूक्ष के साथ बन्ध होता है । और अपने अपने से दो अधिक, तीन अधिक, चार अधिक आदि रूक्ष पुद्गल के साथ भी बन्ध होता है | भगवान् ने प्रज्ञापना सूत्र के १३ वें परिणाम पढ़में कहा हैंप्रश्न---" भगवान् ! बन्ध परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर --- गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है - ( १ ) स्निग्धबन्धनपरिणाम और (२) रूक्षबंधनपरिणाम ।
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समान स्निग्धता या समान रूक्षता होने पर बन्ध नहीं होता है, किन्तु विभात्र-अर्थात् अधिक का होनके साथ, और होनका अधिक के साथ, चाहे वे स्निग्ध हो या रूक्ष हो बन्ध हो जाता है ॥ १ ॥
નથી. જઘન્ય ગુણ (એક ગુણ) સ્નિગ્ધના ચાથવા અજઘન્ય, (એથી લઈ ને અનન્ત ગુણ સુધી) સ્નિગ્ધને પેાતાનાથી એક ગુણુ અધિક રૂક્ષની સાથે બંધ થાય છે. અને પોતપોતાથી એ અધિક, ત્રણ અધિક, ચાર અધિક આદિ રૂક્ષ પુદ્ગલની સાથે પણ બંધ થાય છે, ભગવાને પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના ૧૩મા પિરણામ પદમાં કહેલ છે.
प्रश्न--“ लगवन्! अन्धन - परिशुभ डेटला प्रशरनां द्यां छे ? ઉત્તર—ગૌતમ! બે પ્રકારનાં કહેલાં છે–(૧) સ્નિગ્ધમ ધનપરિણામ અને (१) ३क्षण धनपरिलाभ.
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થતા
વિમાત્ર અર્થાત્ અધિકના હુીનની સાથે અને હાનના અધિકની સાથે, નવરંતુ
स्निग्ध होय में रूक्ष होय, बंध यह लय हे ॥ १ ॥