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काही आजारान
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चिरक्षिमप्रत्ययोऽपि कालमा साचैव जागर्ति । यथा- अनेन महात्मना -:: चिरं तपचरितम्, गजसुकुमा लेन, क्षिप्रमात्मकल्याणं कृतम् इत्यादिवाक्यैस्तपः धरणकल्याणसाधनादीनां विलम्बाविलम्बप्रतीतिः कालाभाचे सति नोपपद्येत 'ह्यः श्वोऽद्य परश्वः’-इत्यादयः कालाभिधायिनः ''शब्दाः” कालारूपमर्थ गमयन्ति । सर्वज्ञेन भगवतोच्चारितत्वादिमे 'शब्दा यथार्थवस्तुबोधकाः रूपशब्दवत् 'असमस्तपदत्वात् शुद्वैपदत्वाच प्रसिद्धं सद्भूतमर्थमावेदयन्ति कालशब्दादयः वर्तनाहेतुत्वाऽस्तित्व ज्ञेयत्वादिगुणाश्रयतया, अतीतानागतवर्तमानादिपर्या
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जल्दी और देर का ज्ञान भी काल के कारण ही होता है, जैसे- " इस महात्मा ने चिरकाल तक तप किया, गजमुकुमाल मुनिने शीघ्र ही आत्मकल्याण कर लिया । इत्यादि वाक्यों से तपधरण और कल्याण साधन नदिमें "विलम्ब और अविलम्ब का ज्ञान काल के अभाव में नहीं हो सकता ।
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'कल आज, परसो' इत्यादि कालवाचक शब्द भी कालनामक द्रव्य को प्रकट करते हैं । सर्वज्ञ भगवान् के द्वारा: उच्चारण: किये हुए. ये काल आदिशन्द वास्तविक वस्तु के बोधक है, क्योंकि यह समासरहित: पद है और शुद्ध एक पद है । जो पद समासरहित और शुद्ध एक पद होते हैं वे वास्तविक पदार्थ केही बोधक होते हैं, जैसे रूप आदि ।
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वर्तनाहेतुत्व, अस्तित्व, ज्ञेयत्व, आदि गुणों का आधार होने से, तथा अतीत, अनागत ( भविष्यत् ) और वर्तमान आदि पर्यायों का आश्रय होने से काल का
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1 ही तुरंत ने ढीसनु- ज्ञान पशु असना अरथी ४ थाय छे. प्रेम- "मा મહાત્માએ લાંખા સમય સુધી તપ કર્યું, ગજસુકુમાલ મુનિએ તુરતમાં આત્મકલ્યાણ કરી લીધું.' ઇત્યાદિ વાકયોથી તપશ્ચરણ અને કલ્યાણસાધન વગેરેમાં વિલમ્બ અને अविसभ्यनुज्ञान असना अभावमा थशशे ि
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'गई शस, भावंती' असे, 'खा, 'परम' हिवसे, "छत्याहि प्रतिवयि शब्द प કાર્લ નામનાં દ્રવ્યને પ્રગટ કરે છે, ‘સર્વજ્ઞ ભગવાન દ્વારા કહેવામાં આવેલા એ કાલ દિ શબ્દ વાસ્તવિક વસ્તુના ખેાધક છે, કેમકે એ સમાસહિત પદં છે અને શુદ્ધ એક પદ્ય છે. જે પદ સમાસરહિત અને શુદ્ધ એક પદ હેય છે, તે વાસ્તવિક चहार्थना ४ बोध होय छे. भरू
वर्तनाहेतुत्व, अस्तित्व, सेयत्व आहि गुलाना आधार होवाथी, तथा भूतभस, ભવિષ્યકાલ અને વર્તમાનકાલ આદિ પર્યાયના આશ્રય હોવાથી કાલનું દ્રવ્યપણુ
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