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________________ णमो सिध्दाणं पद : समीक्षात्मक परिशीलन व टब्बा आगमों के विशेष शब्दों पर पुरानी गुजराती-राजस्थानी-मिश्रित भाषा में संक्षिप्त अर्थ भी लिखा गया। उन्हें टब्बा कहा गया। टब्बा शब्द संस्कृत के स्तबक शब्द से बना है। स्तबक का अर्थ गुच्छा है। गुच्छों की तरह टब्बों में शब्दों का घुला-मिला अर्थ किया जाता है। साधारण पाठकों को टब्बों द्वारा आगमों का सरल रूप में अर्थ समझने में सुविधा होती है। जो संस्कृत, प्राकृत नहीं जानते हैं, वे भी टब्बों की सहायता से आगमों का सार- रहस्य ज्ञात कर सकते हैं। लोकभाषाओं में विविध विधाओं में रचनाएँ प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश के पश्चात् आधुनिक भाषाओं का युग आया और ये भाषाएं पारस्परिक व्यवहार, बोलचाल तथा साहित्य-सर्जन के रूप में प्रयुक्त होने लगीं। जैन साधुओं और उपदेष्टाओं का सदा से इस बात की ओर विशेष ध्यान रहा कि उन द्वारा ऐसे साहित्य की रचना हो, जिससे साधारण जन-समुदाय को शास्त्रीय सिद्धांतों को समझने का एवं स्वाध्याय करने का सुअवसर प्राप्त हो सके। यही कारण है कि गुजराती, राजस्थानी, हिंदी आदि में अनेक ग्रंथों की रचनाएँ हुई। कविता, गीतिका तथा ढालों के रूप में एवं गद्यात्माक शैली में भी रचनाएँ हुईं। तत्त्व-विवेचन, संस्तवनात्मक भक्ति-काव्य तथा चरित-काव्य आदि के रूप में अनेक विधाओं में ग्रंथ लिखे गए। कतिपय लेखकों ने आगमों का भी गीतिकाओं या ढालों में अनुवाद किया। उनमें जैन श्वेतांबर स्थानकवासी आचार्य श्रीजयमलजी, आचार्य श्रीरायचंदजी, आचार्य श्री आसकरणजी आदि आचार्यों का अत्यन्त योगदान है तथा तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य श्री जीतमलजी, जो जयाचार्य के नाम से प्रसिद्ध है, महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने समग्र भगवती-सूत्र का जो अत्यंत विशाल आगम है, राजस्थानी भाषा में गीतिकाओं या ढालों में अनुवाद किया। उन्होंने राजस्थानी में और भी आगम आदि से संबद्ध तथा स्वतंत्र गीतिबद्ध रचनाएं कीं। उन रचनाओं का विस्तार लगभग तीन लाख गाथा-प्रमाण है। जैन विश्व भारती लाडनूं से राजस्थाती-गीतिबद्ध भगवती-सूत्र का प्रकाशन हुआ है। हिंदी वर्तमान समय में भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकृत है। इस (बीसवीं) शताब्दी में सबसे पहले स्थानकवासी परंपरा के विद्वान् आचार्य श्री अमोलकऋषिजी ने बत्तीस आगमों का राष्ट्रभाषा हिंदी में अनुवाद किया, जिसका हैदराबाद से प्रकाशन हुआ। वास्तव में आगमों पर उनका यह महान् कार्य था। तत्पश्चात् आचार्य श्री जवाहरलालजी, श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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