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________________ सिद्धत्व-पर्यवसित जैन धर्म, दर्शन और साहित्य के नाम से प्रसिद्ध हैं। आचार्य रामानुज, मध्व, निंबार्क, वल्लभ आदि ने भी ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखे। जैन आगमों पर भाष्य भी नियुक्तियों की ज्यों गाथात्मक शैली में प्राकृत में रचे गये, जिनमें आगमों में वर्णित सिद्धांतों का विशेष रूप से विवेचन किया गया है। श्री जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण का विशेषावश्यक-भाष्य बहुत प्रसिद्ध है। चूर्णि ___ भाष्यों के बाद आगमों पर चूर्णियों की रचना हुई। चूर्णि का अर्थ पिसी हुई या चूर्ण की हुई एक वस्तु या मिली हुई एकाधिक वस्तुओं का चूर्णित रूप है। चूर्णियों में आगमों के अनेक विषयों का विस्तार से विवेचन किया गया है। चूर्णियाँ गद्य में रची गईं। उनमें एक विशेष शैली का प्रयोग हुआ है। संस्कृत तथा प्राकृत दोनों भाषाओं के मिले-जुले रूप में उनकी रचना हुई, जो मणिप्रवाल-शैली कही जाती है। एक साथ मिश्रित मणि और मूंगे जैसे अलग-अलग दिखलाई पड़ते हैं, वैसे ही उनमें संस्कृत और प्राकृत अलग-अलग दृष्टिगोचर होती है। चूर्णिकारों में जिनदासगणी महत्तर का नाम अत्यन्त प्रसिद्ध है। संस्कृत में टीकाएँ : वृत्तियाँ आगमों पर जैनाचार्यों, साधुओं तथा श्रावकों की सदैव असीम श्रद्धा रही। आगमों का सर्वाधिक महत्त्व माना गया। इसलिये विद्वानों में यह सदैव उत्साह बना रहा कि इनकी उत्तम व्याख्याएँ की जाती व्याख्या और विश्लेषण के लिये संस्कृत का विशेष महत्त्व है। यह बहुत समृद्ध भाषा है। संक्षिप्त शब्दावली द्वारा गहनतम, विस्तृत अर्थ को प्रगट करने में संस्कृत की अपनी अद्भुत विशेषता है। भाषा-वैज्ञानिकों की दृष्टि से संस्कृत का विश्व की भाषाओं में अनुपम स्थान है। इसका शब्दकोश बहुत विशाल है तथा सूक्ष्मतम भावों को सहजरूप में व्यक्त करने में इस भाषा का असाधारण सामर्थ्य है। अत: जैनाचार्यों ने अंग, उपांग, मूल, छेद आदि आगम-ग्रंथों पर संस्कृत में विशालकाय टीकाएँ लिखीं। आचारांग तथा सूत्रकृतांग पर आचार्य शीलांक द्वारा संस्कृत में रचित टीकाएँ बहुत प्रसिद्ध हैं। बाकी के नौ अंगों पर आचार्य अभयदेवसूरि ने टीकाएँ रची। अत: वे नवांगी टीकाकार कहलाते हैं। और भी अनेक आचार्यों ने अंग, उपांग, मूल आदि ग्रंथों पर टीकाएँ लिखीं। ये टीकाएँ वास्तव में जैन तत्त्वज्ञान की एक अमूल्य-निधि हैं। 35 RE Asha
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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