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________________ णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन - gs n a niseD0 TUYESPATre t i सार-संक्षेप साधारण लोगों का चिंतन संसारोन्मुख होता है। यद्यपि सांसारिक पदार्थ नश्वर हैं, किंतु लोगों में ऐसा मोह व्याप्त रहता है कि उनके प्रति आसाक्ति छूटती नहीं। मनोविज्ञान ऐसा मानता है कि मानव अपनी सहज वृत्तियों को कभी छोड़ नहीं पाता। उनको परिष्कृत और अन्य भाव में परिणत किया जा सकता है। यदि वासनागत अभीप्सा को वैराग्य और आत्मोपासना के साथ जोड़ दिया जाय तो वह परिष्कृत हो जाती है। उसका जो काम आदि के साथ लगाव था, वह अध्यात्म के साथ संयुक्त हो जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि वह वृत्ति पवित्र बन जाती है। मनोविज्ञान में इसे वृत्तियों का ऊर्वीकरण (Sublimation) कहा जाता है। संतों ने परमात्मा को जो पति के रूप में स्वीकार किया तथा सूफियों ने प्रेयसी के रूप में माना, उसके साथ मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यही भाव जुड़ा हुआ है। सांसारिक विषयों में सबसे अधिक तीव्रता काम के साथ संबद्ध है। लौकिक प्रेम के रूपक के आधार पर परमात्मोपासना के निरूपण में वासनागत अभीप्सा का आध्यात्मिक रूप में पवित्रीकरण या ऊर्वीकरण होता है, क्योंकि भौतिक रूप में वहाँ न कोई पति है, न कोई पत्नी है, न कोई प्रियतम है, कोई प्रियतमा है। वहाँ वासना का लवलेश भी नहीं होता। वह तो विशद्ध आध्यात्मिक स्थिति है। इस विधि से यदि साधक सिद्धत्व या परमात्म-भाव में जुड़ने का पुरुषार्थ करता है तो वह किसी अपेक्षा से साधना में सहायक ही सिद्ध होता है। heritishsekasisailari HIROmain7ctionNIASISASAHariomuTHANIHIRAINRARTIYAMFiviap 471
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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