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________________ BALATHER णमो सिद्धाणं पद : समीक्षात्मक अनुशीलन SHNASEANINTERNATAAHATE गुरु इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं- जो श्रोत्र का- कर्ण का भी श्रोत्र है, मन का भी मन है, वाणी की भी वाणी है, प्राण का भी प्राण है, नेत्रों का भी नेत्र है, जिसकी शक्ति को पाकर ये सब अपना-अपना कार्य करने में समर्थ होते हैं और हो रहे हैं तथा जो सबको जानता है, वह परब्रह्म परमेश्वर है। उसे जानकर ज्ञानी जन जीवन्मुक्त होकर, इस लोक से प्रयाण कर अपना अमृत स्वरूप पा लेते हैं। विदेह-मुक्त हो जाते हैं अर्थात् जन्म-मृत्यु से सदा के लिए छूट जाते हैं। उस ब्रह्म तक न तो चक्षुइंद्रिय आदि सब ज्ञानेंद्रियाँ पहुँच सकती हैं, न वागिन्द्रिय- वाणी ही पहुँच सकती है और न कर्मेन्द्रियाँ ही पहुँच पाती हैं तथा न मन- अंत: करण ही वहाँ तक पहुँच पाता है, जिससे ब्रह्म के स्वरूप को बतलाया जा सके। इस तत्त्व को न तो हम अपनी बुद्धि द्वारा जानते हैं और न दूसरों से सुनकर ही जानते हैं, क्योंकि वह जाने हुए पदार्थों से अन्यत्र या भिन्न है। मन और इंद्रियों द्वारा नहीं जाने हुए, जानने में न आने वाले पदार्थों से भी वह ऊपर है। अपने पूर्वाचार्यों के मुख से हम यह श्रवण करते आए हैं, जिन्होंने हमें उस ब्रह्मतत्त्व को भलीभांति समझाया है, जिसको वाणी के द्वारा अभ्युदित नहीं किया गया, बतलाया नहीं गया, जिससे वाणी अभ्युदित होती है, अभ्युदय या प्राकट्य की क्षमता पाती है। अर्थात् जिसकी शक्ति से वक्ता बोलने में, व्यक्त करने में समर्थ होता है, उसको ही तुम ब्रह्म जानो। वाणी के द्वारा बताए जा सकने वाले जिस तत्त्व की लोग उपासना करते हैं, वह ब्रह्म नहीं है। जिसको मन या अंत:करण के द्वारा नहीं समझा जा सकता, किंतु मन जिसके द्वारा समझा जा सकता है, उसको तुम ब्रह्म जानो। जिसको मन और बुद्धि के द्वारा जाना जा सकता है, ऐसे जिस तत्त्व की लोग उपासना करते हैं, वह ब्रह्म नहीं है। जिसे कोई चक्षु द्वारा नहीं देख सकता, अपितु चक्षु जिस के द्वारा अपने विषयों को देखते हैं, उसको ही तुम ब्रह्म जानो। चक्षु के द्वारा देखे जाने वाले जिस दृश्य वर्ग की लोग उपासना करते है, वह ब्रह्म नहीं है। जिसको कोई भी श्रोत्र या कान द्वारा नहीं सुन सकता, अपितु जिसके द्वारा श्रोत्र सुनने में समर्थ होता है, उसको तुम ब्रह्म जानो। श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा सुने जाने वाले, ज्ञात होने वाले जिस तत्त्व की लोग उपासना करते हैं, वह ब्रह्म नहीं है। जो प्राण के द्वारा प्राणित- चेष्टा-युक्त नहीं होता, जिससे प्राण, प्राणित-चेष्टा-युक्त होता है, उसी को तुम ब्रह्म जानो। प्राणों की शक्ति से प्राणित-चेष्टा-युक्त दृष्टिगोचर होने वाले जिस तत्त्व की लोग उपासना करते हैं, वह ब्रह्म नहीं है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष संज्ञक चार पुरुषार्थों में मोक्ष परम पुरुषार्थ है। “मोक्ष प्राप्त पुरुष फिर १. केनोपनिषद्, खंड-१, श्लोक-१-८, पृष्ठ : २३-२९. 433
SR No.009286
Book TitleNamo Siddhanam Pad Samikshatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsheelashreeji
PublisherUjjwal Dharm Trust
Publication Year2001
Total Pages561
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size53 MB
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